Dalit Chintan Ka Vikas : Abhishapt Chintan Se Itihas Chintan Ki Or

Hardbound
Hindi
9788181438706
3rd
2020
260
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डॉ. धर्मवीर अपनी निर्भीक तार्किकता और स्पष्टवादी चिन्तन के कारण अक्सर विवाद पैदा करते रहे। दलितों के प्रश्न को उन्होंने बार-बार और कई कोणों से परखने की कोशिश की। उनकी मौजूदा पुस्तक इसी क्रम में एक नयी पहलकदमी है। उनका मानना है कि पिछले कुछ ज्ञात हज़ार वर्षों से दलित चिन्तन एक अभिशप्त चिन्तन रहा है... दलित चिन्तन को अभिशप्त इस रूप में कहा जा रहा है कि यह ब्राह्मण के ज़िक्र से भरा हुआ है।' डॉ. धर्मवीर की स्थापना है। कि 'दलित चिन्तन उस समय मुक्त, स्वतन्त्र और वास्तविक होगा जिस समय उसके जिक्र में से ब्राह्मण का सन्दर्भ निकल जायेगा। वह दिन उसकी सच्ची स्वतन्त्रता का दिन होगा।' उन्हें इसका आभास है कि दलित चिन्तन में निरन्तरता नहीं रही है और इसीलिए उसके विकास में बाधाएँ पड़ी हैं, वह आगे नहीं बढ़ पाया है और उसने एक जगह खड़े हो कर समय गुज़ारा है। इस पुस्तक में संकलित लेखों में डॉ. धर्मवीर ने साहित्य पर भी नज़र डाली है इतिहास पर भी और समाजशास्त्र पर भी। कारण शायद यह है कि यह सारे एक-दूसरे से गूँथे हुए हैं और एक को दूसरे से अलग करना सम्भव नहीं है। यकीनन डॉ. धर्मवीर के ये लेख विचारोत्तेजक हैं। आप उनसे सहमत हों या न हों लेकिन उनके श्रम और विषय की गहराई में उतरने की लगन से प्रभावित हुए बिना नहीं रह सकते। निश्चय ही यह पुस्तक बहुत कुछ सोचने-समझने के। लिए उपलब्ध कराती है। डॉ. धर्मवीर ने इसे समर्पित किया है 'उस दलित चिन्तन को जो दलितों की ज़िम्मेदारी गैर-दलितों पर नहीं डालता और खुद पर ओटता है।' यह समर्पण ही डॉ. धर्मवीर के उद्देश्य को स्पष्ट कर देता है।

डॉ. धर्मवीर (Dr. Dharamveer)

जन्म : 9 दिसम्बर, 1950।व्यवसाय : 1980 के बैच के केरल कैडर के आई.ए.एस. अधिकारी।रचनाएँ :• दूसरों की जूतियाँ (2007)• तीन द्विज हिन्दू स्त्रीलिंगों का चिन्तन (2007)• चमार की बेटी रूपा (2007) • दलित सिविल कानून (2007) • 'जूठ

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