Premchand : Samant Ka Munshi (Khand-Teen-Ka)

Hardbound
Hindi
9788181433770
4th
2017
3
98
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प्रेमचन्द पर लिखी इस छोटी पुस्तक में इसी नजरिये से देखा गया है कि वे दलित और स्त्री के मामले में समय के दबाव के बदले हुए सामन्ती विचारों के व्यक्ति और प्रतिनिधि साहित्यकार थे। मूल्यांकन में उनके योगदान को कम करके नहीं आँका जा रहा है, और मैं उन सबसे सहमत हूँ जो उनकी प्रशंसा करते हैं, बस, एक फर्क साफ-साफ बताया जा रहा है कि प्रगतिशीलता का अर्थ इतना निरपेक्ष न बनाया जाए कि भेष बदलवा कर प्रतिक्रियावाद को जनवाद और सामाजिक सुधार कहा जाए। पाठकों को पता चलेगा कि प्रेमचन्द अपने मूल सामन्ती संस्कारों में ज्यों के त्यों डटे हुए हैं। हाँ, कई रणनीतियों में से एक रणनीति के स्तर पर इतिहास की ऐसी घूर्णियाँ चक्कर काटने लगती हैं जब सामन्त को अपनी गुलाम प्रजा की बात सुननी और अपनी आवाज में उसकी आवाज मिलानी पड़ जाती है ।

- भूमिका से

डॉ. धर्मवीर (Dr. Dharamveer)

जन्म : 9 दिसम्बर, 1950।व्यवसाय : 1980 के बैच के केरल कैडर के आई.ए.एस. अधिकारी।रचनाएँ :• दूसरों की जूतियाँ (2007)• तीन द्विज हिन्दू स्त्रीलिंगों का चिन्तन (2007)• चमार की बेटी रूपा (2007) • दलित सिविल कानून (2007) • 'जूठ

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