पचास कविताएँ : नयी सदी के लिए चयन : सविता सिंह
सविता सिंह की कविता हमारे ऐतिहासिक समय में नयी स्त्री के नये स्वप्नों और सामर्थ्य से भरपूर कविताएँ हैं। सविता सिंह की रचनाशीलता ने हिन्दी काव्य के सौन्दर्य शास्त्र को विस्तार दिया है क्योंकि यह स्त्री-विमर्श के गहरे आशयों से युक्त एक ऐसे सांस्कृतिक बोध का परिणाम है जहाँ आत्मविश्वास से दीप्त एक स्त्री ने हमारी भाषा में 'आत्मचेतस आत्मन' के बहुस्तरीय आविष्कार सम्भव किये हैं। यहाँ सच के अनूठे बिम्ब हैं, जो यथार्थ और स्वप्नमयता के हुन्छ से अपनी ऊर्जा और ताप लेकर आते हैं। सविता सिंह की कविताओं में जहाँ संघर्ष से उपजे आवेग-संवेग के नाना रूप हैं, वहीं संवेदना के गहरे धरातल पर वह आत्मीय एकान्त भी है जहाँ उदग्र ऐन्द्रियता के साथ स्मृति, सृजनशील कल्पना में और कल्पना निरन्तर स्पन्दित स्मृति में बदलती रहती है।
सविता सिंह का काव्य अवदान इस अर्थ में अत्यन्त महत्त्वपूर्ण है कि एक ओर जहाँ इसमें विपुल गरिमा के साथ बदलाव के साक्ष्य उजागर हैं तो दूसरी तरफ़ बदलाव के सांस्कृतिक, सामाजिक कारकों की विनम्र उपस्थिति भी देखी जा सकती है यानी संवेदना और यथार्थ के वैयक्तिक और सामाजिक स्तरों पर इसकी अन्तर्वस्तु में अशेष क्रियाशीलता की सम्पदा है। पचास कविताओं का यह चयन, निस्सन्देह, हिन्दी कविता की अमूल्य थाती है जो बिरल नवोन्मेष से पूरित है।
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चारों तरफ़ नींद है
प्यास है हर तरफ़
जागरण में भी
उधर भी जिधर स्वप्न जाग रहे हैं
जिधर समुद्र लहरा रहा है
दूर तक देख सकते हैं
समतल पथरीले मैदान हैं
प्राचीनतम-सा लगता विश्व का एक हिस्सा
और एक स्त्री है लाँघती हुई प्यास।
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