Pachas Kavitayen Nai Sadi Ke Liye Chayan : Maithilisharan Gupt

Paperback
Hindi
9789350723036
2nd
2023
144
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राष्ट्रजीवन की चेतना को मन्त्र-स्वर देनेवाले राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त सच्चे अर्थों में राष्ट्रभर के कवि थे। उन्होंने आम जन के बीच प्रचलित देशी भाषा को माँजकर जनता के मन की बात, जनता के लिए, जनता की भाषा में कही। इसीलिए राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने उन्हें राष्ट्रकवि का सम्मान देते हुए कहा था, “मैं तो मैथिलीशरण जी को इसलिए बड़ा मानता हूँ कि वे हम लोगों के कवि हैं और राष्ट्रभर की आवश्यकता को समझकर लिखने की कोशिश कर रहे हैं।” कालान्तर उनकी भाषा से हिन्दी की साहित्यिक भाषा का विकास हुआ। उन्होंने पराधीनता काल में मुँह खोलने का साहस न करनेवाली जनता का नैराश्य निवारण करके आत्मविश्वास भरी ऊर्जामयी वाणी दी, इससे भारत- भारती जन-जन का कण्ठहार बन गयी थी। इस कृति ने स्वाधीनता के लिए जन-जागरण किया। इसी कारण गुप्त जी को अपना काव्यगुरु माननेवाले कविवर अज्ञेय जी, 15 अगस्त 1947 को आज़ादी का जश्न मनाने, दिल्ली छोड़कर गुप्त जी के गृहनगर चिरगाँव (झाँसी) गये थे ।

गुप्त जी ने हिन्दी कविता को रीतिकालीन श्रृंगार-परम्परा से निकालकर तथा राष्ट्रीय सांस्कृतिक वाद की संजीवनी से अभिसंचित करके लगभग छह दशक तक हिन्दी काव्यधारा का नेतृत्व किया। ऋग्वेद के मन्त्र 'आ नो भद्राः ऋतवो यन्तु विश्वतः' (श्रेष्ठ विचार हर ओर से हमारे पास आवें) को हृदयंगम करके राम, कृष्ण, बुद्ध, महावीर, कौटिल्य, गुरुवाणी, ईसा तथा मार्क्स के विचार-सार को गहकर, बिना अंग्रेजी पढ़े-लिखे, बुन्देलखण्ड के पारम्परिक गृहस्थ जीवन में सुने आख्यानों को सुन-समझकर स्वाध्यायपूर्वक लोकमंगलमय साहित्य रचा। वाचिक परम्परा के सामीप्य से वे लोकचित्त के मर्मज्ञ बने, इससे उनके काव्य में लोक संवेदना, लोक चेतना तथा लोक प्रेरणा की त्रिवेणी प्रवाहित हो रही है। अस्मिता बोध की आधारशिला पर युगानुरूप भावपक्ष पर रचना- प्रवृत्तियों के वैविध्य से उनका रचना संसार लोकप्रिय हुआ । उनका साहित्य गाँव-गली तक आमजन की समझ में आनेवाला है साथ ही मनीषियों के लिए अनुशीलन, शोध तथा पुनःशोध का विषय है। वे परम्परावादी होते हुए भी 'अलीकवादी' थे तथा शास्त्रों की व्याख्या युग की परिस्थितियों के अनुरूप करने के पक्षधर थे। प्रकृति तथा सौन्दर्य का कवि न होते हुए भी प्रसंगानुकूल रागात्मकता उनके काव्य का महत्त्वपूर्ण पक्ष है।

विगत कुछ शताब्दियों में वैश्विक पटल पर हुई क्रान्तियों से धार्मिक आस्था, देशानुराग तथा राष्ट्रीयता के अनेक परिप्रेक्ष्य सामने आये। इनकी दृढ़ता के कारण जापान बार-बार मिटकर अग्रपंक्ति में खड़ा हो सका, इजरायल ने सर्वाधिक नोबेल पुरस्कार प्राप्त किए तथा चीन विश्व की महाशक्तियों को टक्कर दे रहा है। कभी भारत 'विश्वगुरु' तथा 'सोने की चिड़िया' के रूप में विदेशियों की रुचि तथा ललक का केन्द्र बना रहा। विदेशियों ने यहाँ से बहुत कुछ ले जाने का उपक्रम किया, किन्तु 'कुछ बात है कि हस्ती मिटती नहीं हमारी।' आज भारत की ज्ञान-सम्पदा नयी तकनीक के क्षेत्र में वैश्विक स्पर्धा का विषय है। लड़खड़ाते वैश्विक आर्थिक संकट में भारत की स्थिति भी बेहतर है। नयी सदी के इस परिदृश्य में, नयी पीढ़ी को देश के नवनिर्माण के सापेक्ष अपनी भूमिका सुनिश्चित करनी है।

जब तक नैराश्य से निकलकर आशा और उल्लास की किरण देखने का मन है, आतंकवाद के मुकाबले के लिए निर्भय होकर अडिग मार्ग चुनना है, कृषकों-श्रमिकों सहित सर्वसमाज के समन्वय से देश को वैभव के शिखर पर प्रतिष्ठित करने का स्वप्न है, तब तक गुप्त जी का साहित्य प्रासंगिक है और रहेगा।

'हम कौन थे, क्या हो गये और क्या होंगे अभी' पर चिन्तन और मनन अपेक्षित है, उससे दशा के सापेक्ष दिशा भी मिलेगी। गुप्त जी की बारह खण्डों में विस्तृत ग्रन्थावली से पचास कविताएँ 'नयी सदी के लिए चयन' साहित्यमाला में इसी अभिप्राय से प्रस्तुत की जा रही हैं।

-अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद'

अयोध्या प्रसाद गुप्त 'कुमुद' (Ayodhya Prasad Gupt 'Kumud' )

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मैथिलीशरण गुप्त (Maithilisharan Gupt)

मैथिलीशरण गुप्त (1886 - 1964) राष्ट्रकवि मैथिलीशरण गुप्त (३ अगस्त १८८६ – १२ दिसम्बर १९६४) हिन्दी के प्रसिद्ध कवि थे। हिन्दी साहित्य के इतिहास में वे खड़ी बोली के प्रथम महत्त्वपूर्ण कवि हैं। उन्हें

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