यह संचयन करते हुए अपनी रुचि के अलावा अन्य का भी ध्यान रखा गया है। कोशिश यही रही है कि अज्ञेय के समूचे काव्य-संसार की सर्जनात्मकता से अन्तरंग साक्षात्कार किया जा सके।
-----------
एक दिन देवदारु-वन बीच छनी हुई
किरणों के जाल में से साथ तेरे घूमा था।
फेनिल प्रपात पर छाये इन्द्र-धनु की
फुहार तले मोर-सा प्रमत्त-मन झूमा था
बालुका में अँकी-सी रहस्यमयी वीर-बहू
पूछती है रव-हीन मखमली स्वर से :
याद है क्या, ओट में बुरूँस की प्रथम बार
धन मेरे, मैंने जब ओठ तेरा चूमा था ?
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review