भारतीयता के सामासिक अर्थ-सन्दर्भ - सभ्यताओं और संस्कृतियों के बहुध्रुवीय विश्व परिदृश्य में भारत एक राष्ट्र, भौगोलिक सीमाओं में आबद्ध एक देश भर नहीं, अपितु आधा ग्लोब है। अतः विश्व के अप्रतिहत यूरोपीयकरण के विरुद्ध भारत को अपने वैकल्पिक सभ्यताबोध को दुनिया के समक्ष रखने का अधिकार है। अधिकारिता के इस दावे को यह विरोध द्विगुणित कर देता है, जिसके तहत यह माना जाता है कि वास्तव में विरोध जितना एशिया और भारत के मध्य नहीं, उससे कहीं ज़्यादा भारत और शेष विश्व के बीच है। भारत के इसी साभ्यतिक अधिकार-बोध और विधि-निषेध रूप उसकी इतिकर्त्तव्यता की जाँच-पड़ताल इस पुस्तक में उस आधुनिकता के प्रतिपक्ष में की गयी है, जिसने आज एक बलीयसी विश्व-सभ्यता का रूप धारण कर लिया है। भारत की आज़ादी के मूल्यबोध को इसी पूर्वपक्ष के प्रत्युत्तर में आत्मसात् कर स्वातन्त्र्योत्तर भारत के स्वधर्म को उसके क्रियान्वयन में देखना-चाहना इस पुस्तक की अति विशिष्ट फलश्रुति है।
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