शम्स-उन-नहार बेग़म उर्फ़ मुग़ल महमूद (1914-1993) और ज़हरा बेग़म उर्फ़ ज़हरा श्रीपत राय (1917-1993) बहनें थीं। उनकी सभी कहानियाँ पहले उर्दू में लिखी गयी हैं, बाद में देवनागरी में। अधिकतर कहानियाँ पचास और साठ के दशक में 'कहानी' या कल्पना' में छपी।
ज़्यादातर कहानियाँ उसी हवेली या ‘महलसरा' के निवासियों के बारे में हैं जहाँ दोनों बहनों की परवरिश हुई। इन जीवन गाथाओं को कागज़ पर उतारना उनको माइक्रोस्कोप के नीचे लाना है। लिखे जाने की क्रिया में यह कथाएँ 'महलसरा' के अजीब-ओ-गरीब खेलों का रिकॉर्ड भी बन जाती हैं और उनकी आलोचना भी। कहानियों का सार उनके सन्दर्भ में ही गड़ा हुआ है। हवेली की ज़िन्दगी और उसमें फँसे किरदार सब एक घातक और विषैले प्रारब्ध के मोहरे नज़र आते हैं। किरदारों को हवेली से निकालकर एक बड़े और विस्तृत मानवीय फलक पर रखकर देखने की कोशिश है। चेखव के पात्रों की तरह, किरदार अपनी मौजूदा स्थिति से उबरकर एक ऐसे व्यापक दायरे में पहुँच जाते हैं जहाँ फतवों और फैसलों के लिए जगह नहीं है। किसी सन्देश या 'सत्य' का अमली जामा पहनाने का प्रयत्न इनमें नहीं दिखता।
दोनों बहनों की कहानियाँ एक-दूसरे की नक़ल नहीं हैं। उनमें मुशाबहत है, तो दोनों के सशक्त स्त्री किरदारों में। मुग़ल महमूद की अधिकतर कहानियाँ हवेली में घटती हैं। उनके ऊपर एक प्रकार की नैतिक निराशा छायी हुई है। ज़हरा राय की कहानियों का मिज़ाज फ़रक है। उनमें से कुछ तो हवेली में स्थित हैं, मगर किन्हीं कहानियों के किरदार हवेली के बाहर निकलकर एक शहरी, मध्यवर्गीय ज़िन्दगी बसर करते हुए नज़र आते हैं।
हवेली की दुनिया को शब्दों में ढालने वाली भाषा की अपनी खुसूसियत है। इस दुनिया का बीतना मातम योग्य नहीं है। मगर आलस्य और ऐश-ओ-इशरत से उपजी अतिसुसंस्कृति की बारीकियों का ब्योरा ऐतिहासिक और साहित्यिक सन्दर्भ में भुलाया नहीं जा सकता।
- सारा राय
सारा राय (Sara Rai)
अरविन्द कृष्ण महरोत्रा के साथ किये गये विनोद कुमार शुक्ल की कहानियों के अनुवाद, ब्लू इज़ लाइक ब्लू (2019) को बंगलोर लिटरेरी फेस्टिवल का ‘अट्टा गलट्टा' पुरस्कार मिला है।
ज़हरा राय उनकी माँ थीं और
मुग़ल महमूद ने इलाहाबाद विश्वविद्यालय से 1952 में फ़ारसी में एम.ए. किया। उनकी कहानियाँ पचास और साठ के दशक में अधिकतर 'कहानी' में छपी। उनकी लगभग सभी कहानियाँ नवाब-की-ड्योढ़ी बनारस, यानी अपनी खानदानी