Bharat mein Panchayati Raj : Pariprekshya Aur Anubhav

George Mathew Author
Hardbound
Hindi
9788181430489
2nd
2023
230
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भारत में पंचायती राज लगभग उतना ही पुराना है। जितना स्वयं भारत । लेकिन आज हमारे गाँव-गाँव में जो पंचायतें हैं, वे एक अलग और सर्वथा नयी कहानी हैं। ग्राम, ब्लॉक और ज़िला — इन तीन संस्तरों पर देश भर में फैली हुई इन पंचायतों की स्वतन्त्र संवैधानिक सत्ता है। इसे भारतीय राज्य का तीसरा पाया कहा जा सकता है, जिसकी ज़रूरत 1990 के आसपास इसलिए बहुत ही तीव्रता से महसूस की गयी कि जनता की बुनियादी आवश्यकताएँ पूरी करने के लिए सिर्फ़ केन्द्र और राज्य सरकारों पर परम्परागत निर्भरता की सीमाएँ उस समय तक उजागर हो चुकी थीं और सत्ता के विकेन्द्रीकरण के अलावा कोई और उपाय नहीं रह गया था।

तिहत्तरवें संविधान संशोधन को लागू हुए एक दशक बीत चला है । प्रश्न यह है कि क्या इस लक्ष्य को हम किसी बड़ी सीमा तक हासिल कर पाये हैं, जो इस दूसरी लोकतान्त्रिक क्रान्ति के संवैधानिक स्वप्न के केन्द्र में था ? उत्तर मिला-जुला है। पंचायती राज के माध्यम से गाँव के स्तर पर एक मौन क्रान्ति का सूत्रपात हो है। सत्ता के ज़मीनी स्तर के प्रयोग में चुका महिलाओं, दलितों और आदिवासियों को वांछित स्थान मिल गया है। लगभग सभी राज्यों में पंचायतों के चुनाव नियमित अन्तराल पर होने लगे हैं। बहुत-सी पंचायतों में लोक सत्ता अपने को अभिव्यक्त भी कर रही है। पंचायती राज की सफलता की कथाएँ देश के विभिन्न कोनों से सुनाई पड़ने लगी हैं। लेकिन क़िस्सा यह भी है कि सभी कुछ ठीक-ठाक नहीं है । ग्रामीण भारत की परम्परागत सत्ताएँ इस नये लोकतान्त्रिक निज़ाम को स्वीकार करने के मूड में नहीं हैं। । छल और वंचना के विभिन्न प्रपंचों से तथा ज़रूरत पड़ने पर प्रत्यक्ष हिंसा के द्वारा भी वे पंचायत राजनीति के नये खिलाड़ियों को दबाने और कुचलने में लगी हुई हैं। सबसे ज़्यादा अफ़सोस और चिन्ता की बात यह है कि राज्य सरकारें नहीं चाहतीं कि ये स्थानीय सरकारें उनकी सत्ता में थोड़ी भी साझीदारी करें और केन्द्रीय सरकार भी तरह-तरह से पंचायती राज को शक्तिहीन करने की कोशिश कर रही है । इस निर्णायक मुकाम पर 'पंचायती इच्छाशक्ति' ही कोई बड़ा कमाल कर सकती है।

भारत में पंचायती राज के स्वप्न, परियोजना और कमज़ोरियों का यह प्रखर लेखा-जोखा देश के अनन्य समाजविज्ञानी डॉ. जॉर्ज मैथ्यू ने तैयार किया है। पंचायती राज और विकेन्द्रीकरण के प्रति उनका जैसा अगाध लगाव है और इस क्षेत्र में सिद्धान्त और व्यवहार, दोनों स्तरों पर जितनी निरन्तरता और गहराई से उन्होंने कार्य किया है, उसे देखते हुए यह काम उनसे बेहतर और कौन कर सकता था ?

जॉर्ज मैथ्यू (George Mathew)

मैथ्यू मैथ्यू जन्म 6 को में था। नेहरू से पीएच. की। शोध का था : और केरल में और । में विश्वविद्यालय दक्षिण अध्ययन में में विश्वविद्यालय विज़िटिंग रहे। में विश्वविद्यालय काम के उन्हें वृत्ति की ।

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