द डॉल -
यह नाटक 40 बरस की उम्र के एक ऐसे आदमी की कहानी है जिसकी गर्लफ्रेंड ने सात बरस उसके साथ रहने के बाद उसे इसलिए छोड़ दिया है क्योंकि यह शादी और बच्चे के लिए राजी नहीं था। अकेलापन न सहन कर पाने की वजह से वह कुछ महीनों बाद एक 'नारी डॉल' के साथ रहने लगता है-एक ऐसी आधुनिकतम ह्यूमनॉयड डॉल जो पुरुष को खुश रखने के लिए ही बनायी गयी है। लेकिन ये एन्ड्रॉयड डॉल जिस महिला वैज्ञानिक के द्वारा ईजाद की गयी है उसने नारी-पुरुष सम्बन्धों के बारे में अपने विचार उस एन्ड्रॉयड के दिमाग़ में डाल रखे हैं। एक हल्के-फुल्के और खिलन्दड़े तरीके से उस अकेले आदमी और इस 'डॉल' के साथ-साथ रहने और जीने के दौरान उपजी स्थितियों-परिस्थितियों के माध्यम से स्त्री-पुरुष सम्बन्धों की एक बेबाक और सटीक विवेचना सामने आती है जो नारी को दोयम दर्जे का इन्सान मानने वाली सोच को चुनौती भी देती है और पुरुष मानसिकता के दोहरे मानदण्डों को उद्घाटित भी करती चलती है।
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