भारतीय संगीत वाद्य - भारतीय संगीत वाद्यों की विविधता ने, उनकी सर्जना के शिल्पगत चमत्कार ने और उनके विकास की प्रभावक परम्परा ने विश्व को मोहा तो है किन्तु उनके स्वरूपात्मक एवं प्रयोगात्मक विवेचन का क्रमबद्ध इतिहास सदा ही दुर्लभ रहा है। इस विषय के निष्णात विद्वान, अन्वेषक और मर्मी संगीतज्ञ डॉ. लालमणि मिश्र ने इस दिशा में ऐसा अद्भुत कार्य किया है कि उनके अध्ययन की गहराई, विश्लेषण की क्षमता और कर्मठ अध्यवसाय के अद्भुत परिणाम को देखकर आश्चर्यचकित रह जाना पड़ता है। डॉ. मिश्र ने प्रस्तुत ग्रन्थ में वैदिक काल से लेकर आधुनिक युग तक के भारतीय संगीत वाद्यों के विकास-क्रम का विशद विवेचन किया है, साथ ही इसमें साहित्य, संगीत, धर्मग्रन्थों और प्रस्तरकला एवं चित्रकला के क्षेत्रों में उपलब्ध सामग्री का भी समावेश किया है। फलतः ग्रन्थ में वाण, विपंची, चित्रा, घोषिका, मृदंग, पणव, दर्दुर, पटह आदि प्राचीन वीणाओं एवं अवनद्ध वाद्यों से लेकर, सितार, सरोद, तंजौरी वीणा, विचित्र वीणा, तबला आदि आधुनिक वाद्यों के स्वरूप, शिल्प और वादन-सामग्री के सम्बन्ध में प्रामाणिक तथ्य देकर अनेक प्रचलित भ्रान्त धारणाओं का निराकरण किया गया है। प्रस्तुत ग्रन्थ के द्वितीय संस्करण में अत्याधुनिक विद्युत निर्मित वाद्यों को परिशिष्ट के रूप में जोड़ा गया है। संगीत वाद्यों के अध्येताओं के लिए इस ग्रन्थ में नयी दिशाओं का संकेत है और संगीत के निष्ठावान प्रेमियों के लिए इसमें ज्ञान का अथाह सागर व्याप्त है। भारतीय संगीत के अध्यापकों, विद्यार्थियों, शोधकर्ताओं और वाद्य-शिल्पियों के लिए एक सचित्र एवं प्रामाणिक सन्दर्भ-ग्रन्थ।
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