सिने संगीत का इतिहास - देश में मूक के बाद जब सवाक् सिनेमा का जन्म हुआ तो उन्हीं सवाक् फ़िल्मों ने सिनेमा में गीत-संगीत की पृष्ठभूमि को जन्म दिया था। आज स्थिति ऐसी है कि सिनेमा में गीत-संगीत के स्थान को दरकिनार करके नहीं देखा जा सकता। संगीत न सिर्फ़ उसकी आवश्यकता है बल्कि एक अनिवार्य तत्त्व भी है, जिसके अभाव में किसी फ़िल्म का व्यावसायिक रूप से सफल होना आज भी सन्दिग्ध हो जाता है। स्वामी वाहिद काज़मी ने प्रस्तुत पुस्तक में भारतीय सिनेमा में संगीत के विकास और उसके विकासक्रम को बड़ी ही शोधपरक दृष्टि से देखा है। भारतीय सिनेमा में संगीत के विकास पर नज़र डालें तो यह तथ्य बड़ी शिद्दत से सामने आता है कि भारतीय संगीत के विकास में लोकगीतों के साथ-साथ क्षेत्रीय गीत-संगीत का भी बहुत बड़ा योगदान है। इसके अभाव में सम्पूर्ण भारतीय संगीत जगत का मूल्यांकन कर पाना सम्भव नहीं। तकनीक में आये बदलाव के साथ-साथ संगीत में नये इलेक्ट्रॉनिक वाद्य यन्त्रों के प्रयोग भी उसके विकास में अपना स्थायी महत्त्व रखते हैं। भारतीय सिनेमा में उसकी उपस्थिति को भी लेखक ने रेखांकित किया है। स्वामी वाहिद काज़मी की यह पुस्तक अवश्य ही सिने-संगीत के अध्येताओं को पसन्द आयेगी।
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