Kakkaji Kahin

Paperback
Hindi
9789350724552
4th
2021
176
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अगर लोगों से पूछा जाए कि दूरदर्शन से प्रसारित सत्ता- प्रतिष्ठान पर सबसे करारी चोटें करने वाला कौन-सा सीरियल था तो वे बेहिचक जवाब देंगे- 'कक्काजी कहिन' । दर्शकों के लिए इसका प्रसारण जितने सुखद आश्चर्य का विषय था, उतने ही दुखद आश्चर्य का विषय था दफ़्तरशाहों और नेताओं के लिए। यों यह भी सच है. कि एक दुस्साहसिक दफ्तरशाह, तत्कालीन सूचना- प्रसारण सचिव एस. एस. गिल ने ही जोशी जी से बी. बी. सी. के 'येस मिनिस्टर' जैसी कोई चीज लिखने को कहा था। लेकिन उनके सेवा-निवृत्त होते ही यह कहा गया कि 'येस मिनिस्टर' जैसी चीज दूरदर्शन नहीं दिखा सकता। तो जोशी जी ने धारावाहिक दुबारा लिखा और मुख्य भूमिका से मंत्री जी को हटाकर अपने पुराने व्यंग्य स्तम्भ से नेता जी को बैठा दिया।
इस धारावाहिक के प्रसारण में तरह-तरह के अड़ंगे लगाए गए। पहले उसे बनाने ही नहीं दिया गया। बनाने की अनुमति दी तो दो पायलट नामंजूर कर दिए गए और आखिर में धारावाहिक का प्रसारण हुआ भी तो 'नेता जी' को 'कक्का जी' बनवा कर और हर एपीसोड में से कुछ अंश कटवा कर और कुछ संवादों की बोलती बन्द करवा कर। इसके बावजूद सत्तावान बिरादरी ने इस धारावाहिक का यह कहकर विरोध किया कि देश के नेताओं को बदनाम किया जा रहा है तो दफ्तरशाहों ने तेरहवें एपीसोड पर ही धारावाहिक की तेरहवीं करवा दी।
'कक्काजी कहिन' लेखक के 'नेताजी कहिन' से प्रेरित है और दोनों का चलनायक गोया चालू नायक भी एक ही है लेकिन 'कक्काजी कहिन' और 'नेताजी कहिन' की शैली और सामग्री दोनों ही बिल्कुल अलग हैं। इसलिए ही नहीं कि टेली-नाटक की विधा व्यंग्य स्तम्भ लेखन की विधा से अलग होती है बल्कि इसलिए भी कि- 'कक्काजी कहिन' में अनेक ऐसे प्रसंग और पात्र हैं जो 'नेताजी कहिन' में नहीं थे और 'नेताजी कहिन' के कई ऐसे प्रसंग और पात्र हैं जो 'कक्काजी कहिन' में रखे नहीं जा सके या रखने नहीं दिए गए। सेंसर का तो यह हाल था कि नेताजी का, क्षमा कीजिए कक्का जी का, ओठों के आगे अँगुलियाँ लगाकर पीक की पिचकारी छोड़ना भी धारावाहिक में दिखाया नहीं जा सका।
व्यंग्य लेखन के लिए 'अट्टहास शिखर सम्मान', 'चकल्लस पुरस्कार' और 'शरद जोशी सम्मान' से विभूषित मनोहर श्याम जोशी की इस व्यंग्य-कृति को पढ़कर आपको अवश्य आनन्द आएगा।

मनोहर श्याम जोशी (Manohar Shyam Joshi)

मनोहर श्याम जोशी 9 अगस्त, 1933 को अजमेर में जन्मे, लखनऊ विश्वविद्यालय के विज्ञान स्नातक मनोहर श्याम जोशी ‘कल के वैज्ञानिक’ की उपाधि पाने के बावजूद रोजी-रोटी की खातिर छात्रा जीवन से ही लेखक और पत्

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