बीते बीस सालों में भारत में सामाजिक नीति को लेकर बढी ज़ोरदार बहस हुई है। इस बहस में ज्याँ द्रेज़ का भी। योगदान रहा है और यह किताब ज्याँ द्रेज़ के ऐसे ही कुछ लेखों का संकलन है। साथ ही, किताब में सामाजिक विकास के मसले पर भी लेख संकलित हैं। संकलन के लेख सामाजिक नीति के अहम मुद्दों मसलन शिक्षा, स्वास्थ्य, ग़रीबी, पोषण, बाल- स्वास्थ्य, भ्रष्टाचार, रोज़गार तथा सामाजिक सुरक्षा पर केन्द्रित हैं। साथ ही आपको किताब में कॉरपोरेट शक्ति, आण्विक निरस्त्रीकरण गुजरात मॉडल, कश्मीर की स्थिति तथा सार्विक बुनियादी आय सरीखे अपारम्परिक विषयों पर भी छोटे लेख मिलेंगे। किताब के आख़िर का लेख जनधर्मिता और साथ-सहयोग की भावना पर केन्द्रित है। इसमें तर्क दिया गया है कि विवेक-सम्मत सामाजिक मान-मूल्य की रचना विकास का अनिवार्य अंग है। भारत के व्यावसायिक मीडिया-जगत में ‘झोलावाला' शब्द हिकारत के भाव से इस्तेमाल किया जाता है। इस किताब में पुख़्ता आर्थिक विश्लेषण से युक्त सामहिक कर्म और उससे निकलने वाली सीख पर जोर दिया गया है। पुस्तक की विस्तृत भूमिका में लेखक ने विकासमूलक अर्थशास्त्र के प्रति एक ऐसा नज़रिया अपनाने की हिमायत की है जिसमें शोध-अनुसन्धान के साथ-साथ कर्म-व्यवहार पर भी ज़ोर हो। ज्याँ द्रेज़ राँची विश्वविद्यालय के अर्थशास्त्र विभाग में विजिटिंग प्रोफ़ेसर हैं।।
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