सामाजिक क्रांति के दस्तावेज में भारतीय राष्ट्र और इसकी सांस्कृतिक आधुनिकता के ऐतिहासिक दस्तावेज हैं। नवजागरण के अग्रदूतों के लेखन और भाषणों का यह संकलन आधुनिक भारत के निर्माण की कहानी है। स्वाधीनता-पूर्व भारत के लगभग डेढ़ सौ सालों के सामाजिक आन्दोलन-बंगाल, हिंदी प्रदेश, महाराष्ट्र, गुजरात, उड़ीसा, आन्ध्र प्रदेश, केरल, पंजाब, असम, तमिलनाडु आदि इलाकों में हुई सांस्कृतिक उथल-पुथल का यह एक अनोखा दस्तावेजीकरण है। इसमें हैं उपनिवेशवाद से मुक्ति और सामाजिक क्रांति की भारतीय आवाजें नवजागरण की सौ से अधिक शख्सियतों के विमर्श ।
नवजागरणकालीण व्यक्तित्व, बहुधार्मिक, बहुभाषिक और बहुजातीय देश को औपनिवेशिक वातावरण में भी बुद्धिवाद, समाज सुधार और आधुनिक संस्कृति - आधुनिक दुनिया की ओर किस तरह ले जा रहे थे-उनकी अंदरूनी दुविधा, कश्मकश और कोमलता को उभारता उनका चिंतन सामाजिक क्रांति के दस्तावेज में ! उनका भारत के सामाजिक पुनर्गठन के लिए पश्चिम और अतीत से संवाद ! सभ्यताओं के आत्मनिरीक्षण के उस जमाने में सैकड़ों साल की धार्मिक कूपमंडूकता, असहिष्णुता और भेदभावों को उनकी संगठित चुनौती। एक जटिल औपनिवेशक-धार्मिक माहौल में गढ़ा जा रहा राष्ट्रवाद का धर्मनिरपेक्ष महाख्यान ! स्त्री, दलित, किसान और जातीय भाषा के प्रश्न पर बहसें, तर्क के तूफान ! यह संकलन 19वीं और 20वीं सदी के उस दौर के लेखन और भाषणों का है, जब भारत की अंतरात्मा एक नई करवट ले रही थी, उसका राष्ट्रीय विवेक गढ़ा जा रहा था।
शंभुनाथ द्वारा संपादित सामाजिक क्रांति के दस्तावेज में भारतीय नवजागरण के 'क्रास करेंट्स' की झलकी है। इससे पूर्व की गहराई का बोध हो सकता है और उसकी विविधता का भी!
उदारीकरण के जमाने में जब अनुदारता और अपसंस्कृतियाँ अपने चरम पर हैं, सामाजिक क्रांति के दस्तावेज भारत के सच्चे आधुनिक भविष्य में वापसी का है महाद्वार है।
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