Your payment has failed. Please check your payment details and try again.
Ebook Subscription Purchase successfully!
Ebook Subscription Purchase successfully!
परम्परा की अनिवार्य महत्ता और उसके राजनीतिकरण से होने वाले विनाश को पहचान कर ही हम वास्तविक भारतीयता को जान सकते हैं। इसके लिए समस्त सामाजिक बोध से युक्त इतिहास-दृष्टि की जरूरत है क्योंकि अन्तर्द्वन्द्व और विरोधाभास हिन्दू-अस्मिता के सबसे बड़े शत्रु हैं। दूसरी तरफ समाज के चारित्रिक ह्रास के कारक रूप में संक्रमणशील समाज के सम्मुख परिवर्तन की छद्म आधुनिकता और धर्म के दुरुपयोग के घातक ख़तरे मौजूद हैं। पश्चिम के दायित्वहीन भोगवादी मनुष्य की नकल करने वाले समाज में संचार के माध्यमों की भूमिका सांस्कृतिक विकास में सहायक न रहकर नकारात्मक हो गयी है। ऐसे में बुद्धिजीवी वर्ग की समकालीन भूमिका और भी जरूरी तथा मुश्किल हो गयी है। श्यामाचरण दुबे का समाज-चिन्तन इस अर्थ में विशिष्ट है कि वे कोरे सिद्धान्तों की पड़ताल और जड़ हो चुके अकादमिक निष्कर्षों के पिष्ट-प्रेषण में व्यर्थ नहीं होता। इसीलिए उनका चिन्तन उन तथ्यों को पहचानने की समझ देता है जिन्हें जीवन जीने के क्रम में महसूस किया जाता है लेकिन उन्हें शब्द देने का काम अपेक्षाकृत जटिल होता है।
Log In To Add/edit Rating
You Have To Buy The Product To Give A Review