दो नोबेल पुरस्कार विजेता कवि : मेरे चेहरे के नुकूश - समीक्षकों ने समसामयिक पोल कविता के विकास में मिवोश के दूरगामी योगदान को रेखांकित किया है और पारम्परीण तथा आधुनिकतावादी रूप-विधानों के उनके प्रयोगों, उनकी गीतात्मकता तथा व्यंग्य और अंगांगी अलंकार (सिनेकडॉकी)" पर उनके अधिकार की सराहना की है। उनके पहले तीन संग्रहों 'जमे हुए समय पर एक कविता', 'तीन जाड़े', तथा 'कविताएँ' में ग्रामीण प्रकृतिवादी गीत हैं, सृजन-प्रक्रिया पर चिन्तन है और सामाजिक प्रश्नों पर टिप्पणियाँ भी हैं। जब दूसरे विश्व युद्ध ने मिवोश और उनके साथी-साहित्यकारों की विनाश- भविष्यवाणियों को सच कर दिया तब मिवोश ने नात्सी-विरोधी कविताएँ लिखीं जो गुप्त रूप से छापी और बाँटी गईं। इन कविताओं में उस ज़माने के आतंक और पीड़ा को व्यक्त करने में प्रदर्शित भावनात्मक नियन्त्रण के लिए उनकी प्रशंसा की गई है। स्वयं मिवोश ने अपनी गद्य-पुस्तक “पोल साहित्य का इतिहास" में कहा है : जब कोई कवि सशक्त भावनाओं से विचलित हो तो उसका रूप-विधान अधिक सरल और अधिक सीधा होता जाता है। ऐसा माना जाता है कि मिवोश की प्रतिभा उनके कविता-संग्रह 'उद्धार' में परवान चढ़ी जिसमें उनकी 'दुनिया' और 'गरीबों की आवाज़ें' जैसी सर्वाधिक प्रसिद्ध कविताएँ संकलित हैं। अपने अगले दो संग्रहों 'दिन का उजाला' और 'कविता पर प्रबन्ध' में मिवोश ने गीतात्मकता, आधुनिकता तथा शास्त्रीयता को जोड़ते हुए ऐसी कविताएँ रचीं जो कभी व्याख्यात्मक हैं तो कभी भविष्यदर्शी और कभी गम्भीर। 'अलग डायरियाँ' और 'सूर्य का उगना' जैसे बाद के संग्रहों में मिवोश ने लयात्मक गद्य और अनेक शास्त्रीय तत्त्वों का इस्तेमाल किया, साथ ही सन्तुलन और रूपाकार के प्रति सम्मान और एक मितभाषी शैली का प्रदर्शन भी किया। मिवोश के बारे में महत्त्वपूर्ण यह है कि उन्होंने अधिकांश आधुनिक कविता के एक लक्षण- साथ प्रयोग-को अपने सृजन से दूर ही रखा है और अपने विचारों को अधिक-से-अधिक स्पष्ट रूप से सम्प्रेषित करने का प्रयास किया है। उनके अधिकांश लेखन में गहरी भावना है जिसमें लोकोत्तर आध्यात्मिकता का पुट है। रोमन कैथलिक आस्था में उनकी जड़ों और सत्-असत् की समस्या के प्रति उनके आकर्षण को उनकी कविता और गद्य में प्रतिबिम्बित देखा गया है।
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