Prem Ke Roopak Aadhunik Hindi Ki Prem Kavitaen

Madan Soni Author
Paperback
Hindi
9788181435435
2nd
2010
440
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प्रेम के रूपक -
कविता की जन्म-कथा जो वाल्मीकि ने कही है, जिसके अनुसार कविता का जन्म वाल्मीकि के मानस में उस क्रौंची के शोक रूपी बीज से होता है जिसके प्रेमी की, उनके रति-कर्म के दौरान, एक बहेलिये ने हत्या कर दी थी। क्रौंच की यह मृत्यु एक अर्थ में प्रेम (श्रृंगार) की भी मृत्यु है, जो शोक (करुण) के रूप में परिणित होकर कविता में फलित होती है। यूँ कविता का जन्म प्रेम की मृत्यु के गर्भ से होता है। इस अर्थ में कविता मात्र, अपने मूल रूप में, अपनी जन्मजात कारणता में, शोकमूलक (tragic) है। लेकिन शोक का यह भाव प्रेम के अ-भाव से, उसके विलोपन से अविनाभाव सम्बन्ध रखता है; वह प्रेम के अभाव का प्रतिलोम चिह्न है। इसलिए यह कहा जा सकता है कि कविता-मात्र अपने मूल रूप में, अपने डी.एन.ए. में, प्रेम के अभाव को एक प्रतिलोम चिह्न के रूप में धारण करती है। वह इस अभाव को अनहुआ नहीं कर सकती, क्योंकि इस अभाव का न होना स्वयं उसका (कविता का) न होना होगा। इसीलिए प्रेम (श्रृंगार) और कविता (करुण) के संयोग के अर्थ में प्रेम कविता एक असम्भव कल्पना है। वह, वस्तुतः इस अभाव को अनहुआ करने की कविता की प्रबल आकांक्षा के क्षणों में उसे अनहुआ न कर सकने की उसकी आस्तित्विक विवशता की छटपटाहट है, वह उस गर्भ में वापस लौटने की प्रबल अवचेतन आकांक्षा की विफलता से उत्पन्न छटपटाहट है जिस गर्भ से उसका जन्म हुआ है। लेकिन छटपटाहट के इन्हीं क्षणों में वह प्रेम की दुर्लभ छवियों की रचना करती है। अपनी मृत्यु से दुचार होने के इन क्षणों में वह अपनी देह-भाषा के सबसे क़रीब होती है। यह पुस्तक कविता में प्रेम के सौन्दर्यशास्त्र, उसकी गरिमामयी उपस्थिति और उसके अमूर्त रूप को अभिव्यक्त करती हैI

मदन सोनी (Madan Soni)

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