सुशोभित ने समकालीनता के बहुमुखी सन्दभों को सौम्य सृजनशीलता का प्रगल्भ, निर्भीक और लोकतान्त्रिक आयाम दिया है। इस साहित्यिक तेज़ में अपार नाभिकीय संलयन है, विचारों के श्रृंखलाबद्ध रिएक्शन्स हैं, पाठ और अन्तरपाठों की अनन्त और विमोहक ध्वनियाँ हैं, स्तब्ध करने वाला शब्द व्यापार है! भाष्य, अन्वय, सम्मतियों, असहमतियों और टीका-टिप्पणियों का इन्द्रधनुषी आकल्पन है।
सुशोभित दरअसल एक 'शब्द-स्पेस' को जी रहे हैं, उसे रच रहे हैं। उसी में लय को खोजते हैं और दूसरों को उसी स्पेस में आमन्त्रित करते हैं। वहाँ कला है, दर्शन है, फ़िल्म है, थिएटर है, खेल है, इन सबके नायक-नायिकाएँ हैं। वहाँ शास्त्रों का व्यसन है, काव्योक्तियाँ हैं, अनेकानेक शताब्दियों और विस्तारित भूगोल के अन्तरदेशी लेखकों, भाषाशास्त्रियों, कथाकारों, चिन्तकों और निर्देशकों की भंगी भणितियाँ हैं। वहाँ लहर है, तरंग है, उछाल है, हिलोर और झरने हैं।
सुशोभित बहुपठित और सुविचारित तरीक़े से अपनी बात रखते हैं। वह मूलतः विद्याव्यसनी और स्वतन्त्रचेता व्यक्ति हैं। वह एक अतिविचारशील युवा हैं, जिनके पास नवीन पौरुष की आग और वैजयन्ती भाषा की अपनी ठोस आँच है। उन्होंने हिन्दी भाषा की सम्प्रेषणीयता और उसकी शक्ति को किसी भी भाषा के उपयोगी सौन्दर्य के बराबर लाकर खड़ा किसी है। उनकी भाषायी गरिमा साहित्यिक परिधियों को छूती चलती है और उनकी ललकारभरी बुलन्द आवाज़ मन को किंचित विस्मय में डालती रही है।
- प्रो. आनन्द कुमार सिंह
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सुशोभित की कविताएँ एक आदिम भित्तिचित्र, एक शास्त्रीय कलाकृति और एक असम्भव सिम्फनी की मिश्रित आकांक्षा हैं। ये असम्भव कागजों पर लिखी जाती होंगी-जैसे बारिश की बूँद पर शब्द लिख देने की कामना या बिना तारों वाले तानपूरे से आवाज़ पा लेने की उम्मीद । 'जो कुछ है' के भीतर रियाज़ करने की ग़ाफ़िल उम्मीदों के मुखालिफ ये अपने लिए 'जो नहीं हैं' की प्राप्ति को प्रस्थावन करती हैं। पुरानियत इनका सिंगार है और नव्यता अभीष्ट । दो विरोधी तत्त्व मिलकर बहुधा रचनात्मक आगत का शगुन बनाते हैं।
-गीत चतुर्वेदी
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प्रकाश अत्यन्त प्रतिभाशाली कवि और आलोचक थे जिनका दुर्भाग्य से 2016 में दुखद देहावसान हो गया। वे एक भाषा-सजग शिल्प-निपुण कवि और सजग-संवेदनशील आलोचक थे। रज़ा फाउण्डेशन ने उनकी स्मृति में 'प्रकाश-वृत्ति' स्थापित करने का निश्चय किया जिसके अन्तर्गत सुपात्र और सम्भावनाशील युवा कवियों और आलोचकों की पहली पुस्तकें प्रकाशित करने की योजना है।
यह पुस्तक इसी वृत्ति के अन्तर्गत प्रकाशित हो रही है और हमें विश्वास है कि सुशोभित सक्तावत के पास कविता में कुछ नया-ताज्ञा और मर्मस्पर्शी कहने की प्रतिभा और सामर्थ्य है। उनके इस संग्रह को प्रस्तुत करते हुए हमें प्रसन्नता है।
- अशोक वाजपेयी
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