जंगलों में पगडंडियाँ
'जंगली होने से बेहतर है
जंगलों के हो जाना'
प्रतिभा चौहान की कविताएँ हिन्दी के वैविध्यपूर्ण साहित्यिक संसार में एक अलग स्थान रखती हैं। यूँ तो अनेक विषयों पर कविताएँ लिखी जा रही हैं जिनकी तादात असंख्य है परन्तु प्रकृति और सृष्टि की पक्षधरता में विमर्श के लिए आग्रह करती हुई ये कविताएँ लयात्मकता और गहरी अनुभूतियों को समेटे हुए हैं। प्राकृतिक सौंदर्य व ताज़गी से भरी कविताएँ जो कि किसी भी जुमलों और सपाटपन के संक्रमण से बचती हुई एक नये विमर्श को जन्म देती हैं। भाषाई नवीनता और बिम्बों के माध्यम से प्रतिभा चौहान की कविताएँ निश्चित रूप से एक ऐसा सुन्दर संसार बुनती हैं जो हमें प्रकृति की क़रीब ले जाकर उसका साक्षात्कार कराता है । निःसन्देह ये कविताएँ प्रकृति को उसके मौलिक रूप में पढ़ते हुए कुछ सोचने पर मजबूर करती हैं। इन कविताओं में प्रतिभा चौहान ने न केवल पाठक समाज को विमर्श हेतु बाध्य करने की कोशिश की है बल्कि भाषाई सघनता, नवीनता, अनुभूति की अगाध गहराई इत्यादि गुणों की परिपष्ठवता के माध्यम से कवित्व सौन्दर्य और लयात्मकता का पूरा-पूरा ख़याल रखा है। कविताएँ हृदयों के भीतर झाँकेंगी, झकझोरेंगी और कुछ सोचने पर विवश करेंगी । विशेष उद्देश्य से लिखी गयीं ये कविताएँ प्राकृतिक जीवन को सहज रूप में अनूठा स्वर प्रदान कर रही हैं और यही इनकी उपलब्धि है। नये साँचे, प्रतिमान, कथ्य, अनुभूति, बिम्ब-रचना और संवेदना से भरी हुई ये कविताएँ निःसन्देह पाठकों का ध्यान आकृष्ट कर मस्तिष्क पर दस्तक देंगी।
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