झील के उस पार - यह सभी जानते हैं कि 21वीं शताब्दी के दूसरे दशक के अन्तिम वर्ष और तीसरे दशक के पहले वर्ष में जिसने जो कहर मचा रखा था, वह एक छोटा-सा 'वायरस' ही था। उसे कोई भी इन्सान कभी भूलेगा नहीं। समय हर त्रासदी की पीड़ा को भुला सकता है, लेकिन अपनों को खोने का गम कुछ समय तक भीतर से खोखला बना देता है। आज हम उसी दर्पण में झाँक कर देखें तो, विचित्र भावनाओं की लहर दिखाई देगी। आधुनिक दौड़ में मानव आकाश को छूते हुए भी, वह कितना कमज़ोर है। उसकी आधुनिकता में कितने छेद हैं, एक छोटे से 'कोरोना वायरस' के जन्म से ही पता चला। समय से आगे दौड़ लगाने के दावे निस्तेज हो गये। उनकी क्षमता मार खा गयी। समय एक सवाल है। कवि उसके जवाब को खोजता है। हर चुनौती का सामना कर पारदर्शिता की सृष्टि करनी है। यथार्थों को नकार कर झूठ का सहारा लेने वाले ही नफरत फैलाते हैं। क्योंकि राजनीति अपने स्वार्थ की होती है। वहीं कवि अपनी भावनाओं को स्वच्छता से अभिव्यक्त करता है। निरन्तर परिवर्तित होती राजनीति पर वह अपना विचार रखता है, तो उनकी नज़र में वह दोषी माना जाता है। उत्पीड़ित जनता के आवेदनों पर कवि और साहित्यकार निर्भय से अपनी कलम उठाकर समाज में रोशनी डालने का प्रयास करते हैं। कविता सिर्फ़ कला ही नहीं, वह समाज का जीता-जागता दृश्य भी है। अभियुक्ति की विशिष्टता है। प्रकृति का प्रेम है। मुझे एकान्त में जीने दो कवि मुहम्मद नसीरुद्दीन का हिन्दी में पहला कविता संग्रह है। अब झील के उस पार हिन्दी का दूसरा कविता संग्रह है। इन दोनों कविता संग्रहों से पहले नसीरुद्दीन जी के तेलुगु भाषा में दो कविता संग्रह प्रकाशित हो चुके हैं। झील के उस पार कविता संग्रह में, कवि के आवेदन, कवि की मनोदशा समाज और मानवतावाद को लेकर है। उनकी कविताओं में प्रेम से भरी हुई भावनाओं को देख सकते हैं। इन कविताओं को पढ़ने के बाद आप वर्तमान के अक्स को भविष्य की रेखा पर देख सकते हैं। 84 कविताओं से भरा यह कविता संग्रह आपके विचारों में नयी रोशनी डालेगा।
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