एक शायर बेसे शऊरी तौर पर समाज में पुलिसमैन ही होता है। लेकिन 'तजेन्द्र' को दोहरी ज़िम्मेवारी मिली है। जो करता है, वो कहता भी है। लेकिन उस पर सवार सिस्टम जब चाबुक लहराता है तो उसे 'अरबी घोड़े' की कहानी कहनी पड़ती है। ये नज़्म देखिये- 'अरबी घोड़ा' । कुछ लाइनें पेश कर रहा हूँ, जिससे नज़्म का मक़सद समझ आ जाये।
'बेतहाशा भागते,
दौड़ते एक ही दिशा में....
थक गया हूँ मैं....
एक हाथ से नोच लूँ...
दम घोंटती काठी.....
ज़बान खींचती लगाम...
और स्वतन्त्र कर दूँ
अपनी पहचान
फिर एक छलाँग से
पटक दूँ धरती पर
नक्कली नियम...
फिर खुद सवार हो
अपने पर... कहूँ :
आओ, अब दौड़े
अपने-अपने दम पर ।'
गुलजार
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