मैथिलीशरण गुप्त ग्रंथावली -
गुप्त जी की प्रतिभा की सबसे बड़ी विशेषता है कालानुसरण की क्षमता। अर्थात् उत्तरोत्तर बदलती हुई भावनाओं और काव्य-प्रणालियों को ग्रहण करने की शक्ति। इस दृष्टि से हिन्दी भाषी जनता के प्रतिनिधि कवि ये निस्सन्देह कहे जा सकते हैं। भारतेन्दु के समय से स्वदेश प्रेम कि भावना जिस रूप में चली आ रही थी उसका विकास 'भारत भारती' में मिलता है। इधर के राजनीतिक आन्दोलनों ने जो नया रूप धारण किया, उसका पूरा आभास पिछली रचनाओं में मिलता है। सत्याग्रह, अहिंसा, मनुष्यत्ववाद, विश्वप्रेम, किसानों और श्रमजीवियों के प्रति प्रेम और सम्मान सबकी झलक हम पाते हैं।" -आचार्य रामचन्द्र शुक्ल, ‘हिन्दी साहित्य का इतिहास' पुस्तक से
"गुप्त जी कवि भी हैं और भक्त भी, अतः निर्माण भी उनके स्वभाव में है और निर्मित के प्रति आत्मसमर्पण भी। साहित्य में उन्हें ऐसी ही कथाएँ चाहिए जो लोकहृदय में प्रतिष्ठा पा चुकी हों, पर उस परिधि के भीतर हर चरित्र का कुछ नया निर्माण उनका अपना है। वे रामायण को नहीं भूलते, पर रामायणकार जिन्हें भूल गया उन चरित्रों को अपने ढंग से स्मरण करते हैं। वे महाभारत के स्थान में कोई कथा नहीं खोजेंगे, पर महाभारत के भीतर खोये किसी साधारण पात्र को खोज लेंगे। उनके साहित्य में जो नया है उसका मेरुदण्ड पुराना है और जो पुराना है उस पर रंग नया है।" - महादेवी वर्मा, 'पथ के साथी' पुस्तक से
अन्तिम पृष्ठ -
खड़ी बोली के रूप निर्धारण में अपूर्व योगदान। 'भारत भारती' के प्रकाशन से राष्ट्रीयता की भावना को अपार बल मिला। तभी से 'राष्ट्रकवि' का विरुद नाम के साथ जुड़ गया। राष्ट्रपिता महात्मा गाँधी ने उन्हें 'राष्ट्रकवि' नाम से सम्बोधित किया। सन् 1941 में भारत रक्षा क़ानून के अधीन जेल रहे। स्वाधीन भारत की संसद में आरम्भ से ही मनोनीत सदस्य।
'साहित्य वाचस्पति और डी.लिट्.' (आगरा विश्वविद्यालय 1918) की मानद उपाधियों से सम्मानित। पदमविभूषण 1954। प्रसिद्ध कवि सियारामशरण गुप्त के अग्रज। हिन्दी में रीतिवाद विरोधी अभियान अग्रणी। भारतीय नवजागरण तथा आधुनिक स्वाधीनता संग्राम को अभिव्यक्ति देनेवाले लोक कवि।
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