सनेह को मारग - आनंदघन की जीवनवृत
इमरै बंघा ने घनानन्द के अब तक कई अज्ञात पद भी खोज निकाले हैं। किसी भी कवि के, और घनानन्द जैसे मूर्धन्य के तो निश्चय ही, कई जीवन होते हैं। पहला तो वह जो उसका अपना था और जिसके दौरान उसने काव्यरचना की। दूसरा वह जो उसकी कविता में, काल द्वारा की गयी सारी क्षति के बावजूद, रसा-बसा और बचा रहता है। तीसरा वह जो उसकी कविता को पढ़ने-समझने, उसका अनुवाद करने में रसिक बनाते हैं। शायद इन सबको समौते हुए और फिर भी एक जीवन वह हो सकता है जो इस तरह की जीवनी से प्रगट होता है। मुझे इसमें कोई सन्देह नहीं हैं कि इस जीवनी में घनानन्द का एक पुनर्जीवन सम्भव हुआ है इमरै बंघा द्वारा किया गया सारा शोध नीरस तथ्यसंग्रह नहीं है, उसमें गहरी सर्जनात्मकता है जो यह पुनर्जीवन सम्भव बनाती है। इस जीवनी से न सिर्फ़ घनानन्द का जीवन और उनका महान् प्रेमकाव्य बेहतर समझने में सहायता मिलेगी, बल्कि भारतीय प्रेम काव्य की परम्परा के कुछ शाश्वत और कुछ परिवर्तनशील अभिप्रायों को एक नये विन्यास में देखने की विचारोत्तेजना भी।
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