सप्तर्षिशंख - गुजराती के लोकप्रिय मोहम्मद माकंड के कहानी-लेखन का अपना ही एक फल है और वह भी इतना विस्तृत कि मनुष्य और उसके आसपास की ज़िन्दगी, उसके रंग-ढंग, उनकी समस्याएँ, उलझनें और कोशिशें—सभी कुछ चित्रित है उस पर। उनकी कहानियों में साहूकार है, शोषित आदमी है, प्रतीक्षारत स्त्री है, प्रतिशोध और घृणा का गुप्त आनन्द ले रहा पड़ोसी आदमी है, भावी उम्मीदों पर ज़िन्दगी ढो रहा आदमी है, सब कुछ डूब जाने पर भी बाँसुरी बजा रहा किसान है, तो साथ ही शिक्षक है, डॉक्टर है, मज़दूर है, मुहताज लोग हैं, पुलिस-इंस्पेक्टर है, पहलवान है, डाकू है—यों कहा जाय कि यहाँ एक समूचा संसार है, मानव स्वभाव के विविध रूपों को अनावृत्त करने वाला एक भरा-पूरा संसार। माकंड की हर रचना पाठक के अन्तर्मन की गहराई का मात्र स्पर्श ही नहीं करती, बल्कि वहाँ जाकर पैठ जाती है। कारण स्पष्ट है, मोहम्मद भाई अपने आस-पास की दुनिया से पाये हुए संवेदनों को बहुत ही रोचक एवं सहज ढंग से प्रस्तुत करते हैं। किसी वादग्रस्त प्रयोगवस्त या शैलीग्रस्त हुए बिना ही उन्होंने अपनी सर्जकता की कोंपलों को सतत फूटने दिया है। उनकी रचनाओं में एक ऐसा रस-प्रवाह है जो पाठक के चित्त को बराबर डुबोये रखता है। विशेषकर, गुजराती पाठक की माकंड और उनकी कहानियों के साथ तो जैसे प्रेम की गाँठ ही बँध गयी है। आशा है हिन्दी प्रेमियों को भी उनकी ये कहानियाँ उतने ही सहजभाव से रसान्वित करेंगी।
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