कटे अँगूठे का पर्व - काव्य-नाटक एक मिश्रित साहित्यिक विधा है, जिसमें कविता और नाटक के तत्वों का एक साथ समायोजन होता है। यह एक ऐसा नाट्य रूप है, जिसमें काव्य-तत्व प्रमुख होता है। वस्तुतः आज की कविता में कहन की जो नाटकीय मुद्रा उपस्थित दिखाई देती है, काव्य नाटक उसी का विधा विस्तार है, यानी कविता में नाटक के पदार्पण का यह एक विशद रूप है। हिन्दी में 'अंधायुग' से लेकर अब तक जो काव्य-नाटक लिखे गये हैं, उनमें प्रमुखतः मिथकीय पुराख्यानों का आज के सन्दर्भ में पुनःकथन हुआ है। कुमार रवीन्द्र के काव्य नाटकों की मुद्रा भी यही रही है। प्रस्तुत पुस्तक में उनके लिखे दो काव्य-नाटक एक साथ उपस्थित हैं और इन दोनों के कथानक, भारतीय मनीषा के जो दो महाकाव्यात्मक आर्य ग्रन्थ हैं यानी रामायण एवं महाभारत, उन्हीं के उप-प्रसंगों पर आधृत हैं। रामकथा में उत्तररामचरित अधिकांशतः उपेक्षित रहा है। कुमार रवीन्द्र ने उसे ही अपने काव्य नाटक 'कहियत भिन्न न भिन्न' का वर्ण्य विषय बनाया है और उसके माध्यम से फ़िलवक़्त के यक्ष प्रश्नों को पारिभाषित किया है। काव्य नाटक 'कटे अँगूठे का पर्व' में महाभारत के एकलव्य प्रसंग को लेखक ने समसामायिक सन्दर्भों की आख्या के रूप में प्रस्तुत किया है, जिसमें वर्ग-भेद, दलित विमर्श एवं वर्तमान राजनीति के तमाम प्रश्नों की ओर सार्थक इंगित किया गया है। भारतीय ज्ञानपीठ को इन काव्य-नाटकों को प्रस्तुत करते हुए पूरी आशा है कि ये नाटक अपने विशिष्ट कथ्य एवं अलग किसिम की अपनी कहन की दृष्टि से हिन्दी नाट्य लेखन में विशेष पहचान बना पायेंगे।
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