जब मैं ज़िन्दा होती हूँ - स्वाति मेलकानी सन्तुलित और प्रभावी भाषा की धनी कवयित्री हैं। उनकी कविताएँ सहज तथा सरल होते हुए भी प्रभावपूर्ण हैं। स्त्री विमर्श की ऐसी सकारात्मक अभिव्यक्ति बहुत ही कम देखने को मिलती है। प्रेम, प्रकृति तथा पहाड़ को केन्द्र में रखकर मानव मूल्यों तथा सम्बन्धों को परिभाषित करने वाली इन कविताओं के मूल सामाजिक विद्रूपता तथा नारी मन की व्यथा कथा का दंश अधिक रहा है। इन कविताओं का स्वर अत्यन्त आत्मीय तथा हृदयग्राही है। इनकी कुछ प्रेम कविताएँ इतना नयापन लिए हुए हैं कि उन्हें पढ़कर आश्चर्य होने लगता है। एक अति सम्भावनाशील युवा कवयित्री की सर्वथा पठनीय कृति।
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