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Jal Par Bikhar Gaya Hai Sona

Usha Yadav Author
Hardbound
Hindi
9789390659937
1st
2022
136
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₹290.00

जल पर बिखर गया है सोना - 'जल पर बिखर गया है सोना' के गीत-नवगीत मेरी क़लम से लिखे अवश्य गये हैं, पर इसका श्रेय मैं स्वयं को नहीं, गीत में अन्तर्निहित संवेदना को देती हूँ। प्राय: हर गीत में व्याप्त संवेदना इतनी प्रगाढ़ रही कि उसने मेरे मानस को झंकृत किया और क़लम की नोक पर आकर ख़ुद को लिखवा लिया। जब आप इन गीतों-नवगीतों को पढ़ेंगे, तो यक़ीनन उन संवेदनाओं से जुड़ेंगे। अध्यात्म, प्रकृति, श्रृंगार के संयोग-वियोग पक्ष, पर्व-त्योहार और जीवन के विविध रंग-रूप हैं यहाँ। इनमें अवगाहन कर आप भूमण्डलीकरण की वर्तमान जीवन-शैली के बोझिल, तनाव भरे और अवसाद युक्त अहसासों से दूर होंगे। साथ ही उन कोमल मधुर-मार्दव भावनाओं से जुड़ेंगे, जो हमारा अभीप्सित, मनोवांछित आनन्द-लोक है। अन्ततः गीतों के मनोरम संसार से हमें इसी सुख की चाहत रहती है न! ‘जल पर बिखर गया है सोना' लौकिक जगत में इसी अलौकिक सुख की प्रतीति है।—उषा यादव

उषा यादव (Usha Yadav )

उषा यादव - जन्म: कानपुर (उ.प्र.)। शिक्षा: एम.ए. (इतिहास, हिन्दी), पीएच.डी., डी.लिट्.। प्रकाशित साहित्य: कविता, कहानी, उपन्यास, नाटक, समीक्षा आदि हिन्दी साहित्य की विविध विधाओं में बच्चों एवं बड़ों के

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