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Madhav Kahin Nahin Hain

Hardbound
Hindi
8126310480
5th
2015
174
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₹100.00

माधव कहीं नहीं है - नारद के माध्यम से श्रीकृष्ण के चरित्र का वर्णन करनेवाला एक अद्भुत और अनूठा उपन्यास है यह 'माधव कहीं नहीं है'। कृष्ण-दर्शन के लिए लालायित नारद पता लगाते हुए जब तक अमुक स्थान पर पहुँचते हैं तब तक कृष्ण वहाँ से निकल चुके होते हैं—किसी नयी घटना के योजक, प्रेरक या फिर स्वयं स्रष्टा बनकर। कृष्ण से उनकी अन्त तक भेंट नहीं हो पाती है। लेकिन हर किसी अमिलन में उन्हें ऐसा अनुभव होता है जैसे वे उन्हें पा चुके हैं। परम तत्त्व का कोई पार नहीं है लेकिन जितने अंश में पानेवाला स्वयं परम बनता जाता है उतने ही अंश में वह परम तत्त्व का सांगोपांग अनुभव प्राप्त कर लेता है। नारद को कृष्ण का रूप कृष्ण से दूर रहकर क्या-कैसा दिखता गया और उसे देखते हुए उनके अपने स्वरूप में भी क्या कुछ परिवर्तन होता गया—उपन्यास की कथा इसी रहस्य को खोलती है। इसी बहाने श्रीकृष्ण के जीवन की अनेक घटनाएँ इस कृति में अनायास ही समाविष्ट हो जाती हैं। गुजराती के अग्रणी कथाकार श्री हरीन्द्र दवे ने जिस कलात्मक ढंग से इस कृति को रूपाकार प्रदान किया है, उससे यह बेहद रोचक और पाठक के मन को गहरे तक प्रभावित करनेवाली बन गयी है। निस्सन्देह रचनाकार की भाषा की विलक्षण, गहरी और संस्कारशील समझ से ही यह सब सम्भव हो सका है। कहा जा सकता है कि इस उपन्यास से हिन्दी पाठक-जगत् सन्तुष्ट तो होगा ही, वह कथाशिल्प के एक नये आयाम से भी परिचित हो सकेगा। प्रस्तुत है उपन्यास का नया संस्करण।

हरीन्द्र दवे अनुवाद डॉ. भानुशंकर मेहता (Harindra Dave Translated By Dr. Bhanushankar Mehta )

हरीन्द्र दवे - (1930-95) गुजराती के अग्रणी साहित्यकार श्री हरीन्द्र जयन्तीलाल दवे की सर्जनात्मक पृष्ठभूमि में उनकी पारम्परीण सांस्कृतिक आस्था, आध्यात्मिक चिन्तन और आधुनिक विचारों की प्रायोगिक

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