Harindra Dave Translated By Dr. Bhanushankar Mehta

हरीन्द्र दवे - (1930-95) गुजराती के अग्रणी साहित्यकार श्री हरीन्द्र जयन्तीलाल दवे की सर्जनात्मक पृष्ठभूमि में उनकी पारम्परीण सांस्कृतिक आस्था, आध्यात्मिक चिन्तन और आधुनिक विचारों की प्रायोगिक अन्तर्दृष्टि का अद्भुत समन्वय है। विगत पाँच दशकों में अनवरत सारस्वत साधना में संलग्न उन्होंने गुजराती में अब तक छह काव्य संग्रह, ग्यारह उपन्यास, दो नाटक, आठ विवेचना-ग्रन्थ, पाँच निबन्ध-संग्रह और तीन धर्म-विषयक ग्रन्थ देकर भारतीय साहित्य को समृद्ध किया है। वे गुजराती के प्रमुख दैनिक 'प्रवासी' और 'जन्मभूमि' के प्रधान सम्पादक रहे हैं। श्री दवे को उनके साहित्यिक अवदान के लिए गुजरात सरकार ने उन्हें कई बार सम्मानित एवं पुरस्कृत किया है। साहित्य अकादेमी पुरस्कार (1978), रणजीतराम स्वर्णपदक (1982), श्रीअरविन्द पदक (1983), हारमॅनी अवार्ड (1989), महाराष्ट्र गौरव (1990), के. एम. मुंशी स्वर्णपदक (1992), कबीर सम्मान (1992) आदि पुरस्कारों से उन्हें सम्मानित किया गया है।

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