ख़िलाफ़ हवा से गुज़रते हुए - भारतीय ज्ञानपीठ के नयी पीढ़ी को समर्पित प्रतियोगिता क्रम की दूसरी कड़ी में विनोद दास का काव्य संकलन 'ख़िलाफ़ हवा से गुज़रते हुए' सर्वश्रेष्ठ निर्णीत हुआ था। देश के कोने कोने से प्राप्त 234 काव्य पाण्डुलिपियों में इस काव्य संकलन को सर्वश्रेष्ठ करार देने के अपने निर्णय का आधार स्पष्ट करते हुए निर्णायक मण्डल (सर्वश्री गिरिजा कुमार माथुर, रमानाथ अवस्थी, बिशन टंडन और बालस्वरूप राही) ने कहा था— "'ख़िलाफ़ हवा से गुज़रते हुए' संकलन की कविताएँ समकालीन समाजिक यथार्थ से सीधी टकराहट की कविताएँ है। उनमें एक नयी अनुभव-भूमि उद्घाटित हुई है जिसके वृत्त में साधारण आदमी के संघर्ष, सुख-दुख, परिस्थितियों की विडम्बनायें विषम स्थितियों से जूझने की पीड़ाएँ बहुत मर्मशीलता के साथ अभिव्यक्त हुई है। जन परम्पराओं को लेकर आदमी के निकटतम परिवेश के छोटे-छोटे उपकरण, वस्तुएँ, दैनिक क्रिया-कलाप, गृह-गन्ध और वे सारे शब्द-बिम्ब जिनके भीतर से आदमी के सहज जीने की छवियाँ झाँकती हैं, बहुत ही सीधी, सजीव भाषा में व्यक्त किये गये हैं। इन कविताओं की भाषा सीधे ज़िन्दगी से उठायी गयी है और उसमें आज के मुहावरे का यथार्थ (रीयलिज़्म) दृष्टव्य है। आज की समकालीन कविता जब अन्योतिपरक होकर रह गयी है, रपट बन गयी है, एक-से शब्द-बिम्बों की दुहराहट सर्वत्र दिखाई देती है और यथार्थ की मार्मिक संवेदना के स्थान पर यथार्थ के कंकाल की खड़खड़ाहट सुनायी देती है, तब ये कविताएँ सामाजिक तथ्यों और शिल्प का एक नया नमूना नयी पीढ़ी के सामने रखती हैं। इन कविताओं में सामाजिक परिवर्तन की अदम्य आकांक्षा अत्यन्त आत्मीय सम्बन्धों के बीच से जागृत हुई है। ज़मीन की गन्ध से जुड़ी हुई इन कविताओं से सामाजिकता को एक नयी दिशा मिलेगी।" साहित्य में अपनी पहचान स्थापित करने नये लेखकों को भारतीय ज्ञानपीठ सदा सक्रिय सहयोग देता आया है। इसी क्रम में हमारे इस उल्लेखनीय प्रयास का भी साहित्य जगत में सोत्साह स्वागत होगा, इसका हमें विश्वास है।
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