खट्टे नहीं अंगूर - 'खट्टे नहीं अंगूर' चन्द्रकिशोर जायसवाल की कहानियों का प्रतिनिधि संग्रह है, जिसमें उनकी चौदह कहानियाँ हैं। हर कहानी का अपना एक स्वतन्त्र अस्तित्व है, मगर कहानियों की पृष्ठभूमि उनका अपना घर-गाँव ही है, जहाँ से उनका गहरा रागात्मक लगाव है। जायसवाल भाषा का कोई नया प्रयोग नहीं करते और न ही उनमें शिल्प-साधने का विशेष आग्रह है, मगर कहानियों की विषय-वस्तु ज़्यादातर उन इलाक़ों से है, जहाँ पर भारतीय समाज की वर्गीय चेतना बेहद जटिल संरचना के साथ मौजूद दिखाई देती है। प्रेम, घृणा, करुणा, संवेदना, सामाजिक जीवन के स्थायी भाव हैं और लेखक उन पर शोधपरक दृष्टि अख़्तियार करते हुए कथा-विन्यास का अनुर्वर भूखण्ड खोज निकालता है। इतना ही नहीं कथाकार पूरी सजगता के साथ गाँव-घर के अन्तर्विरोधों और वहाँ की विडम्बनाओं को उजागर करता चलता है। चन्द्रकिशोर जायसवाल निःसन्देह ऐसे कथागो हैं, जिनको रेणु की कथा-भूमि पर खड़ा हुआ देखा जा सकता है।
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