काला नाग - पंजाबी कहानीकारों में जिनका नाम प्रमुखता से लिया जाता है उनमें महिंदर सिंह सरना एक हैं। एक समीक्षक के अनुसार, "सशक्त अभिव्यक्ति और निजी शैली इस लेखक की अपनी विशेषता है।" सरना ने रूप और वस्तु दोनों ही पक्षों से कहानी को नया आयाम देकर पंजाबी साहित्य की श्रीवृद्धि की है। अपनी देखी-भोगी ज़िन्दगी से लेखक की चेतना सहज में, अनायास ही, कुछ ऐसे विषय चुन लेती है जिनमें व्यंग्य या कटाक्ष के लिए काफ़ी गुंजाइश होती है। और फिर वह व्यंग्य कहानी का आकार ग्रहण कर बहुत ही और असरदार बन जाता है। लोप होते हुए मानवीय मूल्यों, सामाजिक अन्याय, आर्थिक शोषण, भ्रष्टाचार आदि पर सरना की लेखनी अचानक ही बहुत पैनी हो जाती है, जहाँ लगता है कि विद्रोह की लौ अब भड़की तब भड़की। लेकिन कहानी के तल में उनकी मनोवैज्ञानिक सूझ और संयम इस तरह पैठे होते हैं कि वह लौ विनाशकारी न होकर अँधेरे में भटके व्यक्ति और समाज का मार्गदर्शन करनेवाली दीपशिखा बन जाती है। सरना की कहानियों में कला के साथ-साथ 'कहानी', जो आजकल आधुनिकता की आड़ में कम होती जा रही है, प्रचुर मात्रा में है। हिन्दी पाठकों को सरना का यह संग्रह भेंट करते हुए ज्ञानपीठ को हर्ष का अनुभव हो रहा है।
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