चौंसठ कविताएँ - 'चौंसठ कविताएँ' की रचनाओं में कवयित्री इन्दु जैन की हार्दिकता एवं बौद्धिकता अपने नैसर्गिक रूप में अभिव्यक्त हुई है। प्रेम जीवन का केन्द्रीय स्वर है और इन्दु जैन की कविताओं का स्वर-समारोह उन्हें राग सिद्ध कवयित्री के रूप में प्रतिष्ठित करता है। आदिम आकर्षण को सनातन स्वीकृतियाँ, प्रत्यूष वेला में उन्मीलित होता मुग्ध मन, कृतज्ञता के कुँवारे कमल, देह की देहरी पर ठिठकी अस्तित्व की पदचाप, राग-विराग के तटबन्धों के बीच तरंगाकुल अन्तःसलिला और इन्द्रधनुषी पंख लगाकर नभ नापती अभिलाषाएँ—इनकी सुकोमल छवियाँ 'चौंसठ कविताएँ' के आँगन में कौंधती हैं। इन्दु जैन की सहज संवेदनशीलता इन कविताओं पर ओस की बूँदों की तरह झिलमिला रही है। साथ ही, अपनी इयत्ता व आम आदमी के प्रति सजगता उनकी पहचान है। 'चौंसठ कविताएँ' इन्दु जी का पहला कविता संग्रह है। जो प्रथम बार 1964 में भारतीय ज्ञानपीठ से प्रकाशित हुआ था। इस संग्रह ने हिन्दी कविता के प्रान्तर में एक नयी सम्भावना का संकेत किया था जिसे कवयित्री की रचनात्मक यात्रा ने सिद्धि का रूप दिया। 'चौंसठ कविताएँ' का नया संस्करण ऐसी अनेक स्मृतियों को आलोकित करता है। इसका एक अन्यार्थ भी है। आधुनिकता के अपरम्पार प्रपंचों में धँसती जा रही मनुष्यता प्रेम की उँगली पकड़कर ही उबर सकती है। यह संग्रह ऐसी ही अभिव्यक्तियों से भरा-पूरा विश्वास है, यह नवीन और सुसज्जित संस्करण 'पुनर्नवा' के रूप में सुधी पाठकों की आत्मीयता अर्जित करेगा।
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