Mughal Mahabharat : Natya Chatushtaya

Hardbound
Hindi
9789326352192
2nd
2014
936
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मुग़ल महाभारत : नाट्य-चतुष्टय - क्लैसिकल ग्रोक नाटक में एक महत्त्वपूर्ण श्रेणी Tetralogy थी अर्थात् चार सम्बद्ध नाट्य-कृतियों की इकाई। इसमें पहले तीन नाटक त्रासदी होते थे और चौथा कामदी। संस्कृत नाट्य शास्त्र की रसवादी रंगदृष्टि में ट्रैजिडी की अवधारणा नहीं थी और कॉमेडी मुख्यतः विदूषक के आसपास घूमती थी। मुग़ल महाभारत : नाट्य चतुष्टय क्लैसिकल ग्रीक और क्लैसिकल संस्कृत नाट्य-परम्पराओं के रंग-तत्त्वों का सम्मिश्रण एवं संयोजन है। यहाँ पहली तीन नाट्य रचनाएँ त्रासदी हैं और चौथी के गम्भीर आवरण में किंचित् हास्य-व्यंग की अन्तःसलिला संस्कृत नाट्य प्रस्तावना की तर्ज़ पर चारों नाट्य-कृतियों में नट-नटी के जैसा विषय प्रवेश भी किया गया है—अन्तर यही है कि इस नाट्य-युक्ति का निर्वाह मंच पर नट-नटी नहीं, उत्तराधिकारी युद्ध में वधित राजकुमार करते हैं। अंक एवं दृश्य-विभाजन संस्कृत नाट्य शास्त्र के अनुसार है। औरंगज़ेब और दारा शिकोह के बीच उत्तराधिकार युद्ध मुग़ल साम्राज्य एवं भारत के लिए निर्णायक ही नहीं, पारिभाषिक भी साबित हुआ। भारत के इतिहास में पारिवारिक संकट ने महा अनर्थकारी 'राष्ट्रीय' आयाम न इससे पहले कभी लिया, न इसके बाद। यह इतिहास का ऐसा विध्वंसक मोड़ था, जब व्यक्तिगत द्वन्द्व और 'राष्ट्रीय' संकट की विभाजक रेखा इस तरह विलुप्त हुई कि राजपरिवार का विनाश और साम्राज्य का विघटन–ये एक ही त्रासदी के दो चेहरे बन गये। नाट्य-चतुष्टय के पहले भाग की नायिकाएँ राजपरिवार के बहुल, विरोधी समीकरणों से दीप्त राजस बहनें हैं—जहाँआरा, रौशनआरा तथा गौहरआरा, जिनका अपने-अपने पसन्दीदा भाई के सिर पर किरीटाकांक्षा से संलग्न निजी अभिप्राय भी है चिरकुमारी स्वरूप मरने की नियति (अकबरे-आज़म ने मुग़ल राजकुमारी का विवाह निषिद्ध कर दिया था) से विमुक्ति पा, अपनी हथेलियों में निकाह की हिना लगाना! दूसरे भाग की नायिका साम्राज्य की प्रथम महिला जेबुन्निसा मुगल राजवंश के अनिवार्यता सिद्धान्त को विस्तारित करते हुए, सम्राट पिता के ख़िलाफ़ विद्रोह करने और सलीमगढ़ में बन्दी बनने वाली अकेली राजदुहिता बनीं। छोटे भाई शहज़ादे अकबर के साथ यह असफल विद्रोह अन्ततः आलमगीर प्रशासन के विनाश एवं साम्राज्य के विघटन का पहला चरण साबित हुआ। फिर सम्राट और प्रधानमन्त्री के बाद अब शक्ति केन्द्र सामन्त बनें, जिनमें से दो भाई—अब्दुल्ला ख़ाँ एवं हुसैन अली-तीसरे भाग के केन्द्रीय पात्र हैं। बड़े सैयद अपनी राजनीतिमत्ता से घुन लगे मुग़ल प्रशासन को धर्मनिरपेक्ष तथा प्रातिनिधिक बनाते हुए बचाने की ऐतिहासिक कोशिश करते हैं, लेकिन क्योंकि छोटे भाई एवं विविध नस्लों के सरगना सिर्फ़ स्वार्थ संचालित हैं, इसलिए अब्दुल्ला अपने स्वप्न का मूल्य अपनी जान से देते हैं। चौथे भाग में 26 बरसों से दक्खिन में मराठों से अन्तहीन युद्ध लड़ रहे मध्यकालीन इतिहास के सबसे जटिल चरित्र आलमगीर ज़िन्दा पीर को नींद नहीं आती, जबकि अपने वंश में सर्वाधिक संख्या में राजनीतिक वध करने के बाद वह देश में सबसे विशाल साम्राज्य का निर्माण कर चुके हैं, लेकिन मुमताज़ महल, शाहजहाँ और दारा शिकोह उनके सपने में आकर उन्हें प्रताड़ित करते हैं। उनका उपचार करती हैं डॉक्टर ज़ुबैदा। कौन हैं ये मनोचिकित्सक? अपने विखण्डन (Deconstruction) के बाद क्या औरंगज़ेब को अन्ततः निद्रासुख मिलता है? क्या वह 26 बरस बाद दिल्ली वापस लौटकर लाल क़िले में ख़ुद बनायी मोती मस्जिद में प्रार्थना कर पाते हैं? दारा, जहाँ आरा, ज़ेबुन्निसा, अकबर तथा अब्दुल्ला—नाट्य-चतुष्टय इन पाँच पराजितों की गाथा है, पर महाविजयी औरंगज़ेब का भी अन्त में इस स्वीकारोक्ति—मैं संसार में अपने साथ कुछ लेकर नहीं आया था और अपने पाप फल के अतिरिक्त कुछ लेकर नहीं जा रहा हूँ—सहित इनके साथ खड़ा हो जाना इतिहास के ग़लत मोड़ का कार्मिक-नैतिक रेखांकन।

सुरेन्द्र वर्मा (Surendra Verma )

सुरेन्द्र वर्मा  जन्म : सितम्बर, 1911 शिक्षा : एम.ए. (भाषाविज्ञान) अभिरुचियाँ : प्राचीन और मध्यकालीन भारतीय इतिहास, सभ्यता एवं संस्कृति; रंगमंच तथा अन्तरराष्ट्रीय सिनेमा में गहरी दिलचस्पी । कृत

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