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Bheetar Kahin…

Hardbound
Hindi
9788126320547
1st
2010
208
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₹120.00

भीतर कहीं... - कोई वीतरागी दिगम्बर मुद्राधारी महाव्रती साधु जब अपनी संयम साधना के साथ आत्मस्थ/ध्यानस्थ होने का नित-नव अभ्यास प्रारम्भ करता है, तत्त्वों का चिन्तन-मनन करता है तब उसके भीतर जागृत हो रहीं अनुभूतियाँ उसे काव्यसृजन के लिए प्रेरित करती हैं। यही कारण है कि मुनिश्री के काव्य में श्रद्धा, अनुभूति और लौकिक यथार्थ का स्फुरण सर्वत्र परिलक्षित होता है। किसी भी सन्मार्गी सहृदय के जीवन में यह एक सहज-स्वाभाविक प्रक्रिया हो सकती है। मुनि श्री अजितसागर के इस काव्य में उनकी भाव प्रवणता, रोचकता और सरलता कविता के हर पद में झलकती है.... विश्वास किया जाना चाहिए कि इस काव्य-रचना को सहृदयता से पढ़ा व स्वीकारा जायेगा। -ब्र. सुदेश जैन

मुनिश्री अजीतसागर (Munishri Ajitsagar)

मुनि श्री अजितसागरजी - पूर्व नाम : श्री विनोद कुमार जी। पिता : श्री कोमलचन्द जैन, माता : श्रीमती ताराबाई जी। जन्म : 17 अप्रैल, 1968 सिमरिया, गढाकोटा, ज़िला सागर (म.प्र.) क्षुल्लक दीक्षा : 20 अप्रैल, 1996, अक्ष

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