चुप्पी वाले दिन - पिछले कुछ वर्षों से मालिनी गौतम की कविताओं ने पाठकों का ध्यान आकर्षित किया है। विभिन्न माध्यमों में उनकी कविताँ पढ़ी और सराही भी गयी हैं। 'चुप्पी वाले दिन' मालिनी का तीसरा कविता संग्रह है। इस संग्रह की कविताएँ एक युवा कवयित्री की परिपक्व रचनाओं से साक्षात्कार कराती हैं। इन कविताओं में न तो अनगढ़पन है, न एकरसता और न ही कमज़ोर अभिव्यंजना। यहाँ कवयित्री की सुचिन्तित काव्यदृष्टि है और भरपूर ताज़गी भी। इसकी कविताएँ हमें नये अनुभव संसार में पहुँचाती हैं। टटकी संवेदनाओं के आधार पर नये सिरे से जगाती हैं और थोड़े ठहराव के साथ सोचने के लिए मजबूर भी करती हैं। इस संग्रह में समय, समाज और लोक को अपने ढंग से देखने और समझने का मौलिक प्रयास है। मालिनी गौतम की कविताएँ उलझाती नहीं, सीधे हृदय में उतरती हैं। गम्भीर से गम्भीर मुद्दों, समस्याओं, सन्दर्भों और परिप्रेक्ष्य को अत्यन्त सहज ढंग से व्यक्त करती हैं। विषय वैविध्य 'चुप्पी वाले दिन' पुस्तक की सबसे बड़ी विशेषता है। इसमें हमारा समकाल पूरी शिद्दत के साथ अंकित हुआ है। सामाजिक, आर्थिक, राजनीतिक, धार्मिक, सांस्कृतिक स्थितियों के साथ अतीत और वर्तमान, परम्परा और विज्ञान, स्मृति और यथार्थ आदि के समन्वय के साथ कवयित्री की रचना-दृष्टि का सुन्दर परिचय मिलता है। कठिनतम परिस्थितियों में स्वयं को माँजने और तराशने में रचनाकार की आस्था है। इस महाविकट समय के महामौन और गहरी चुप्पी को तोड़ने की आवश्यकता है। प्रेम, स्नेह, सौहार्द, रिश्ते, विश्वास, थोड़ा-सा मनुष्यत्व आदि को बचाये रखने का प्रबल आग्रह करती है। मालिनी की कविता गहरी राजनीतिक समझ, सत्ता को चुनौती और विभिन्न आयु वर्ग के स्त्री जीवन के विविध रूपों, छवियों, स्वप्नों, संघर्षों और जिजीविषाओं का सतरंगी इन्द्रधनुष इधर के कविता संग्रहों में मुश्किल से दिखाई पड़ता है जो यहाँ विद्यमान है। निस्सन्देह 'चुप्पी वाले दिन' एक महत्वपूर्ण कविता संग्रह सिद्ध होगा।—अरुण होता
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