उनका बोलना - युवा कवि मोहन कुमार डहेरिया के प्रस्तुत कविता-संग्रह में तल्ख़ स्मृतियाँ और भावी समय की भयावहता के गहरे संकेत हैं। कई जगह संश्लिष्ट और लम्बी बुनावट में आधुनिक मनुष्य के द्वन्द्व और विकलता की मार्मिक अनुगूँज है। इन कविताओं से गुज़रते हुए हम एक ऐसी दुनिया में दाख़िल होते हैं जहाँ उपभोक्तावादी संस्कृति तथा पतनशील जीवन मूल्यों के बवण्डर में मनुष्य की अस्मिता और गरिमा तिनके की तरह उड़ रही है। समाज में भाँति-भाँति की विसंगतियाँ, भेदभाव और प्रदूषण फैला है। श्री डहेरिया की कविता इनके ख़िलाफ़ एक आवाज़ है। चुप्पी के इस माहौल में ऐसी आवाज़ों की ज़रूरत है। डहेरिया की कविताएँ लम्बी लयात्मकता और उलझे समय को अपने शिल्प में व्यक्त करती हैं। इन कविताओं में ऐसे चेहरे भी हैं जो जीवन के अँधेरे में अपना प्रकाशवृत्त रचते हैं, पूरे परिवेश को आलोकित करता है और वक़्त के विपुल शोर में एक विरोधी आवाज़ को काव्यार्थ देता है। 'उनका बोलना' संग्रह की कविताओं में कथ्य का वैविध्य है, महीन संवेदना और गहरी सांकेतिकता है, जो पाठकों को कविता से जुड़ने और उसके अन्दर उतरने के लिए प्रेरित करती है।
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