उजाड़ में परिन्दे - गीतकार नईम ने गीत (नवगीत) के पूरे रसायन को इस तरह परिवर्तित किया कि उनके हस्तक्षेप को गीत-विधा के इतिहास में बार-बार रेखांकित किया गया। 'उजाड़ में परिन्दे' नईम की रचनाशीलता का एक और गीतात्मक सोपान है। नईम गीत की अन्तर्वस्तु में रिश्तों की समकालीन व्याकरण, सियासत की सर्वग्रासी छाया, उपयोगितावाद की ऊलजुलूल ऊहापोह, व्यर्थता बोध के विवरण, प्रतिरोध के दृढ़ निश्चय, महानगरों की माया और आत्मालोचन आदि को सम्मिलित करते हैं। विषय वैविध्य और अभिव्यक्ति का सधाव नईम को उनके समकालीन कवियों में विशिष्ट बनाता है। 'उजाड़ में परिन्दे' यथार्थ को शब्दांकित करने के साथ-साथ उज्ज्वल जिजीविषा के स्वर भी सुरक्षित करता है। नईम की यह शब्द स्मृति कितनी मूल्यवान है, यह बताने की आवश्यकता नहीं है।
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