Tathaapi

Hardbound
Hindi
8126312211
1st
2006
208
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तथापि - 'तथापि' उपन्यास हिन्दी के कविहृदय कथाकार की एक ऐसी रचना है जिसने अपने समय, समयगत द्वन्द्व, संवेदना, स्वप्न, संकल्पों और चुनौतियों को अधिक प्रखर बनाया है। यही एक ऐसा लैंस है जिसके माध्यम से तथापि का यह आख्यान अपने समय को एक भिन्न लीला समय में देखने की चमत्कारी और तृप्तिदायक अनुभूति कराता है। कालिदास के मेघदूत का मार्ग वक्र होते हुए भी सरल है, पर 'तथापि' के यक्ष का मार्ग वक्र ही नहीं, ख़तरनाक भी है। इसी पर चलते हुए वह मुक्त होता है, अपनी दासता से। वह अपनी ग्रन्थियों से भी मुक्त होता है और स्वतन्त्रता का जिस तरह वरण करता है वह हमारी समकालीनता में आज के हिन्दी उपन्यास से 'तथापि' को अलग करता है। एक क्लासिक्स की छाया में लिखी गयी यह कृति अपनी मर्यादा में अपनी ज़मीन का विस्तार कुछ इस तरह करती है कि 'मेघदूत' की पिछवई भी धूमिल होती चली जाती है। 'तथापि' एक कवि के गद्य की उपज है। यह कवि-दृष्टि ही है जो इस उपन्यास के साथ न्याय कर सकी है। यह कवि-दृष्टि ही एक अनुकूल कथाभूमि आविष्कृत कर सकी और ऐसे कथापात्रों को भी, जो अपने में साधारण होते हुए भी असाधारण हैं। दूसरे शब्दों में, कल्पित होकर भी वे हमारे बीच के ही नहीं, हम जैसे ही लगते हैं। 'तथापि' में दो समय रचे गये हैं, जो हमें एक तीसरे समय में ले जाते हैं और वह तीसरा समय जितना रम्य है उतना तप्त भी है।

प्रमोद त्रिवेदी (Pramod Trivedi )

प्रमोद त्रिवेदी - जन्म: 24 अक्टूबर, 1941 को बड़नगर (मध्य प्रदेश) में। उज्जैन के सान्दीपनी स्नातकोत्तर महाविद्यालय में प्रोफ़ेसर एवं अध्यक्ष कुछ समय तक महाविद्यालय के प्राचार्य पद पर रहे। बचपन मे

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