Streeshatak (Part-2)

Pawan Karan Author
Hardbound
Hindi
9789387919334
3rd
2019
2nd
216
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पवन करण का स्त्रीशतक एक विलक्षण कृति है। इसमें हमारी सभ्यता और इतिहास के वे अनछुए पहलू बहुत साहस के साथ बेबाक शैली में कवि ने उजागर कर दिए हैं, जिनमें देश की आधी आबादी की भूली बिसरी कथाएँ और व्यथाएँ सिमटी हुई हैं।

यह सत्य है कि अपने उदात्त मूल्यबोध, चिन्तन के विलक्षण प्रकर्ष और काव्यकल्पनाओं की अगम्य उड़ानों में संस्कृत का साहित्य जितना विशाल तथा सम्पन्न है, उतना ही वह एकांगी भी है, क्योंकि वह पुरुष समाज के वर्चस्व और पुरुषवाद का साहित्य है । स्त्री को दिया जाने वाला सम्मान इस समाज में पुरुष के अधिकार और अनुग्रह का सापेक्ष है। स्त्री के उन्मुक्त चिन्तन और नारीस्वातन्त्र्य का जो विचार सभ्यता के आधुनिक विमर्श ने आज के साहित्य में संचारित किया, उसके आधार पर उसका आकलन करना तो उसके साथ अन्याय ही होगा, पर इस अपार विशाल साहित्य के हाशियों, परिपार्श्वो या पृष्ठभूमि में असंख्य महनीया महिलाओं की वेदनाएँ, कराहें, उत्तप्त अश्रु तथा आहें हैं, उन्हें तो अवश्य देखा-परखा जाना चाहिए। ये वेदनाएँ, कराहें, उत्तप्त अश्रु तथा आहें उस धरती की कोख में दबी रह गई हैं, जिस पर उठकर पुरुष नाना पराक्रम करता है, अपने विधि-विधान और व्यवस्थाएँ रचता है।

पवन करण (Pawan Karan)

पवन करण जन्म : 18 जून 1964, ग्वालियर (म.प्र.) । शिक्षा : पीएच.डी. (हिन्दी) जनसंचार एवं मानव संसाधन विकास में स्नातकोत्तर पत्रोपाधि।प्रकाशन : आठ कविता संग्रह इस तरह मैं, स्त्री मेरे भीतर, अस्पताल के बाहर

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