स्पन्दन - कथयत्री स्नेहा देव ने जीवन के तमाम पहलुओं को बहुत ही संवेदनशीलता से महसूस किया है और उन्हें शब्दों के माध्यम से कविता की शक्ल में उतारा है। इन कविताओं में स्त्री के अन्तर्मन की तमाम परतें खुलती चलती हैं। ये कविताएँ हमारे मन-मस्तिष्क पर लम्बे समय तक विचरण करती हैं। इस कविता संग्रह के लिए स्नेहा देव की बहुत-बहुत बधाई। —सविता देवी महाराज 'स्पन्दन' की कविताएँ और इसमें शामिल चित्र स्त्री-जगत के नये मनोभावों को बहुत ही सुन्दरता से व्यक्त करती हैं। कवयित्री स्नेहा ने चित्रों के माध्यम से भी कविता उकेरने की कोशिश की है। स्नेहा को उज्ज्वल लेखकीय भविष्य की शुभकामनाएँ। —अविनाश पसरीचा 'स्पन्दन' पढ़ के यूँ लगा कि ये कविताएँ बात करती हैं आपसे, किसी पुराने दोस्त की तरह वो सारी बातें जो सबसे ज़रूरी थीं और अचानक आधी रह गयी कहीं, वो सारी बातें बहुत सहज भाषा और विचार में। —अनुभव सिन्हा
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