Shri Radha

Hardbound
Hindi
NA
1st
1990
268
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श्रीराधा - व्यक्ति का मन उसके जीवन काल के परे कुछ नहीं सोचता और यदि वह प्रेम करने का निर्णय लेता है तो वह अपने जीवन तथा जीवन काल के बाहर इसे प्राप्त करने की इच्छा नहीं रखता। जीवन के बाहर न तो कोई काल होता है और न स्थान। इसलिए अपने समय को व्यर्थ के कामों में नहीं गँवाया जा सकता, यद्यपि समय अक्षय है पर किसी भी ऐसे कार्य के लिए जो इस प्रेम का अंश नहीं है जीवन में कोई स्थान नहीं है, व्यक्ति जानता है कि सम्बन्ध शाश्वत रूप से बने नहीं रह सकते और उन्हें सन्तोषजनक ढंग से पुनर्व्यवस्थित करने के लिए पर्याप्त समय नहीं होगा, इसलिए उसमें अपने प्रेमी को समझने तथा उसे क्षमा करने की क्षमता भी अधिक होती है। मैं किसी ऐसी चिड़चिड़ी राधा की कल्पना नहीं कर सकता जो कृष्ण को वृन्दावन छोड़ने के लिए, उस पर निष्ठा न रखने के लिए तथा उसके प्रति उदासीन रहने के लिए चिड़चिड़ाती हो और उसके प्रति प्रेम को मान्यता दिलवाने या उसके साथ रहने के उपाय ढूँढ़ने के लिए उससे कहती हो ऐसा कोई भी आचरण उसके लिए अप्रासंगिक है। प्रारम्भ से ही वह ऐसी कोई आशा नहीं पाले रखती कुण्ठित होकर निराश होने की भी उसके लिए कोई सम्भावना नहीं है। अगर वह निराश हो सकती है तो केवल इसलिए, कि कृष्ण को जिस सहानुभूति तथा संवेदना की आवश्यकता थी, वह उसे न दे सकी। न दे पाने की पीड़ा कुछ लोगों के लिए न ले पाने की पीड़ा से बड़ी होती है।

रमाकान्त रथ (Ramakant Rath )

रमाकान्त रथ - ओड़िया के वरिष्ठतम आई.ए.एस. अधिकारी ही नहीं, रमाकान्त रथ ओड़िया के शीर्षस्थ कवियों में से हैं। उनके अब तक 8 कविता संग्रह प्रकाशित हुए हैं। ‘सप्तमऋतु’ 1978 के साहित्य अकादेमी पुरस्का

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