साम्प्रत मैं चिरन्तन - सन् 2001 के ज्ञानपीठ पुरस्कार से अलंकृत गुजराती के यशस्वी और शीर्षस्थानीय कवि श्री राजेन्द्र केशवलाल शाह की सात दशकों की काव्य-यात्रा का सर्वोत्तम संचयन प्रस्तुत करते हुए भारतीय ज्ञानपीठ को प्रसन्नता है। रवीन्द्र और गाँधी युग की छाया में अपना लेखन आरम्भ करने वाले कवि राजेन्द्र शाह की कविताओं में सौन्दर्य एवं अध्यात्म का श्रेष्ठ समन्वय मिलता है। प्रकृति उनके काव्य में अपने पूरे वैभव में अवतरित हुई है। औपनिषदिक वेदान्त ने उनकी कविता को वैचारिक गहराई दी है। उनकी कविता में दार्शनिकता, रहस्यमयता के साथ ही संवादिता, आत्मतृप्ति और प्रसन्नता का भाव सहज रूप से अभिव्यक्त होता है। राजेन्द्र शाह ने समत्व दृष्टि से जीवन-मांगल्य का गान किया है। उनकी कविताओं में साम्प्रत समस्याओं की स्थूल प्रतिध्वनि भले ही न मिलती हो लेकिन मानववाद का एक गहरा अन्तःसूत्र उनकी कविता को चिरन्तनता देता है। राजेन्द्र शाह की कविताओं का चयन और सम्पादन गुजराती और हिन्दी पर समान अधिकार रखनेवाले उच्चकोटि के सर्जक रघुवीर चौधरी द्वारा किया गया है। नागरी लिपि में मूल गुजराती कविताओं के साथ ही हिन्दी अनुवाद प्रस्तुत किया गया है, जिससे रसज्ञ पाठक चाहें तो मूल कविताओं का भी आनन्द ले सकें। विश्वास है, 92 वर्ष के वयोवृद्ध कवि की आजीवन साधना का चयनित यह संकलन ज्ञानपीठ की श्रेष्ठ साहित्य को प्रकाशित करनेवाली परम्परा को समृद्ध करेगा।
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