Nagaare Ki Tarah Bajte Shabda

Hardbound
Hindi
8126310154
1st
2005
96
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नगाड़े की तरह बजते शब्द - नगाड़े की तरह बजते शब्द मूलतः संताली भाषा में लिखी सुश्री निर्मला पुतुल की कविताएँ एक ऐसे आदिम लोक की पुनर्रचना हैं जो आज सर्वग्रासी वैश्विक सभ्यता में विलीन हो जाने के कगार पर है। आदिवासी जीवन, विशेषकर स्त्रियों का सुख-दुःख अपनी पूरी गरिमा और ऐश्वर्य के साथ यहाँ व्यक्त हुआ है। आज की हिन्दी कविता के प्रचलित मुहावरों से कई बार समानता के बावजूद कुछ ऐसा तत्त्व है इन कविताओं में, संगीत की एक ऐसी आहट और गहरा आर्त्तनाद है, जो अन्यत्र दुर्लभ है। इन कविताओं की दुनिया बाहामुनी, चुड़का सोरेन, सजोनी किस्कू और ढेपचा की दुनिया है, फूलों-पत्रों-मादल और पलाश से सज्जित एक ऐसी कठोर, निर्मम दुनिया जहाँ 'रात के सन्नाटे में अँधेरे से मुँह ढाँप रोती हैं नदियाँ'। यह दुनिया सिद्धू-कानू और बिरसा के महान वंशजों की दुनिया भी है, 'पहाड़ पर अपनी कुल्हाड़ी की धार पिजाती' दुनिया। वह आदिम संसार अपने सर्वोत्तम रूप में 'उतनी दूर मत ब्याहना बाबा' कविता में व्यक्त हुआ है। यह ऐसी कविता है जिसमें एक साथ आदिवासी लोकगीतों की सान्द्र मादकता, आधुनिक भावबोध की रूक्षता और प्रतिरोध की गम्भीर वाणी गुम्फित है। ये कविताएँ स्वाधीनता के बाद हमारे राष्ट्रीय विकास के चरित्र पर प्रश्न करती हैं। सभ्यता के विकास और प्रगति की अवधारणा को चुनौती देती ये कविताएँ एक अर्थ में सामाजिक-सांस्कृतिक श्वेत-पत्र भी हैं। मूल संताली भाषा की परम्परा में निर्मला पुतुल के स्थान से अनभिज्ञ होते हुए भी मुझे लगता है कि हिन्दी रूपान्तर में इन कविताओं का स्वाद और सन्देश निश्चय ही भिन्न है। प्रतिरोध की कविता की महान परम्परा में जहाँ 'नगाड़े की तरह बजते हैं शब्द', निर्मला पुतुल का यह संग्रह अपना स्थान प्राप्त करेगा। 'आज की तारीख़ के साथ कि गिरेंगी जितनी बूँदें लहू की पृथ्वी पर उतनी ही जनमेगी निर्मला पुतुल हवा में मुट्ठी-बँधे हाथ लहराते हुए!'—अरुण कमल

निर्मला पुतुल (Nirmla Putul )

निर्मला पुतुल - एक संताल आदिवासी परिवार में 1972 में जन्म। शिक्षा: इंटरमीडिएट, नर्सिंग में डिप्लोमा। प्रकाशन: 'नगाड़े की तरह बजते शब्द' पहला कविता-संग्रह। पत्र-पत्रिकाओं में विविध विधाओं में रच

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