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Kahin Aur

Hardbound
Hindi
9788126313723
2nd
2016
136
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₹250.00

कहीं और - हिन्दी के सुप्रसिद्ध कथाकार एवं कवि वीरेन्द्र कुमार जैन के इस कविता संग्रह में दार्शनिक भावबोध की अपूर्व ऊँचाई है। यहाँ कवि की व्यक्तिसत्ता असीम शून्य के अनहद नाद में अपनी सम्पूर्ण चेतना को इस तरह घुला देती है कि शेष रह जाता है सिर्फ़ एक निर्वैयक्तिक भान और इसी आन्तर चेतना से उपजी हैं ये कविताएँ। पुस्तक के पहले खण्ड में वन्य-भूमि के विभिन्न दृश्यों पर आधारित कविताएँ हैं, जो देखे से ज़्यादा उस अनदेखे का चित्रण करती हैं, और जिन्हें मन की आँखों से देखना पड़ता है। ये कविताएँ उस भाव-जगत की रचना करती हैं जो प्रत्यक्ष दृश्य-जगत की 'स्पिरिट' के साक्षात्-बोध के चिन्मय, पारदर्शी बिम्बों से सज्जित हैं। संग्रह के दूसरे खण्ड 'अन्तरिमा' की कविताओं में अन्तर्यात्रा की यह अनुभूति और सघन हो उठी है और इसके आखिरी खण्ड 'सम्बोधन' में प्रश्नाकुल कवि अपने आत्म से संवाद करता है। इस मुक़ाम पर उसकी लालसा वहाँ पहुँचने की है, जहाँ तक अभी वह जा नहीं सका; वह होने की है, जो वह अभी नहीं हो सका। सन्देह नहीं कि हिन्दी कविता के विस्तृत और बहुविध संसार में इन कविताओं का विशिष्ट स्वर पाठक को एक सर्वथा नया आस्वाद प्रदान करेगा।

वीरेन्द्र कुमार जैन (Virendra Kumar Jain )

वीरेन्द्र कुमार जैन - अन्तश्चेतना के बेचैन अन्वेषी, प्रसिद्ध कवि-कथाकार और मौलिक चिन्तक । प्रथम महायुद्ध के दिनों मन्दसौर में जन्म तथा इन्दौर में एम.ए. तक शिक्षा। वहीं साहित्यिक जीवन का आरम्

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