कहाँ जा रहे हैं हम - ज्ञानपीठ पुरस्कार से सम्मानित तमिल के प्रख्यात उपन्यासकार अखिलन के इस बहुप्रशंसित उपन्यास—'कहाँ जा रहे हैं हम' में आज़ादी के बाद के कुछ दशकों में समाज और जीवन के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार, को बहुत ही तल्ख़ ढंग से चित्रित किया गया है। ऐसे समय में न्याय एवं नैतिकता के लिए समर्पित लेखक-पत्रकार की जद्दोजहद कितनी विकट होती है इसे अखिलन ने बहुत गहराई से उकेरा है। तत्कालीन समाज की आर्थिक और सामाजिक बुनावट तथा उसके अन्तर्विरोधों को अभिव्यक्त करता यह उपन्यास आज के परिदृश्य में भी प्रासंगिक है। चरित्र और घटनाओं को मनोहारी ढंग से प्रस्तुत करने की अखिलन की अपनी सरल स्वाभाविक शैली के कारण यह उपन्यास और भी प्रभावशाली हो गया है। उपन्यास में आदर्श प्रेमी युगल चिदम्बरम और भुवनेश्वरी के जटिल सम्बन्धों की मार्मिक कहानी है; जो इस विषाक्त परिवेश में अनथक संघर्ष करते हैं। अपने समाज की दुरवस्था और राजनीतिक विकृति पर भी अखिलन ने अपना आक्रोश पूरे साहस के साथ उजागर किया है। एक भीषण ज्वालामुखी सरीखे इस उपन्यास में समाज के प्रत्येक क्षेत्र में व्याप्त भ्रष्टाचार और पाखण्ड का पूरी सजगता के साथ बेलौस चित्र खींचते हुए अखिलन ने गाँधीवादी दर्शन को उसकी समग्रता के साथ व्यक्त किया है।
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