गुरुवर बच्चन से दूर - डॉ. हरिवंशराय बच्चन पर अजितकुमार की चर्चित कृति 'कबकेसा' के बाद उसी तारतम्य में यह 'गुबसेदू' है अर्थात 'गुरुवर बच्चन से दूर'। वस्तुतः इसमें संवादों की दीर्घ श्रृंखला है गुरु-शिष्य के बीच। एक लम्बे कालखण्ड में अजितकुमार जी ने अनौपचारिक ढंग से बातचीत के सिलसिलों में उत्खनन करते हुए जिन प्रसंगों को उकेरा है उनमें ताप है, नवीनता है, अलक्षित दृश्य अर्थ हैं। स्मृतियों का एक कोलॉज है जिसमें समय की धड़कनों का सुगठित इन्दराज है। इस कृति में बच्चन जी की साफ़गोई, साहस और खुलस को जुदा ढंग से पाकर हम कुछ प्रफुल्लित होते हैं और कुछ विस्मित। अजितकुमार ने गुरुवर बच्चन के जीवन के अछूते, अनसुने अध्यायों को प्रस्तुत करने में अपनी एक शैली ईजाद की है, जो विशिष्ट और प्रशंसनीय है। पाठकों के लिए यह एक सुखद अनुभव सिद्ध होगा।
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