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Astitva

Hardbound
Hindi
8126311266
1st
2005
216
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अस्तित्व - 'अस्तित्व' उपन्यास स्त्री की संघर्ष-गाथा ही नहीं, स्त्री के उस संसार की खिड़की भी है, जिसमें उसके सपने, महत्त्वाकांक्षाएँ, प्रेम की अनुभूतियाँ, मन की कोमल भावनाएँ, यथार्थ से टकराने की ताक़त तथा जिज्ञासाएँ निहित हैं। पुरुष समाज में स्त्री, जब-जब सचेत होकर अपनी निजता को बचाये रखने के लिए संघर्ष करती है, तब-तब अकेलेपन से जूझना उसकी नियति बन जाती है। प्रस्तुत उपन्यास की स्त्री-पात्र 'सरयू' कल्पनाशील, सुसंस्कृत एवं आधुनिक है। प्रत्येक स्त्री की भाँति उसका अपना संसार है जिसमें भय और संशय बेशक हों, एक ऐसी शक्ति भी है जिससे वह सामन्ती एवं उपभोक्तावादी संस्कृति से अपने अस्तित्व की लड़ाई लड़ती है। उसकी लड़ाई न केवल खोखले कुलीनतावादियों से है बल्कि कार्पोरेट जगत की चालाकियों, छद्म जटिलताओं और पाखण्ड से भी है। भौतिकतावाद की दुनिया अँधेरे के कीचड़ से लथपथ है, लेकिन उसपर रोशनी का लेमिनेशन जगमगाता है, जिसे देखकर सरयू ठगी-सी रह जाती है। फिर भी वह पुरुषों द्वारा घोषित नियतिवाद से टकराती है और अपनी स्वतन्त्र राह बनाने की कोशिश करती है। संक्षेप में, यह उपन्यास नये ढंग से स्त्री-विमर्श को केन्द्र में रखता है तथा स्त्री की जटिलताओं, तनाव, भय, असुरक्षा के भाव तथा अकेलेपन के विषय में सोचने के लिए विवश करता है। इस उपन्यास की भाषा, लयात्मकता और संवेदनशीलता पाठक को एक नये भावबोध से बींध देती है।

ज्ञानप्रकाश विवेक (Gyanprakash Vivek)

ज्ञानप्रकाश विवेक जन्म : 30 जनवरी 1949 (बहादुरगढ़) तैंतीस वर्ष तक एक साधारण बीमा कम्पनी में नौकरी और सेवानिवृत्ति के बाद पूर्णकालिक लेखन ।प्रकाशित पुस्तकें उपन्यास गली नम्बर तेरह दिल्ली दरवाज़

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