Kante Ki Baat - 9 SHABD KA BHAVISHYA

Hardbound
Hindi
9788170557258
2nd
2020
143
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शब्द का भविष्य कांटे की बात का नौवाँ खण्ड है, इसमें बीसवीं सदी के अन्त में लेखक ने अगली सदी के भविष्य को पढ़ने की कोशिश की है। अगली सदी दो समानान्तर दुनियाओं को एक-दूसरे के सामने ऐसे मोड़ पर पायेगी, जहाँ विरोध भी होगा, सह-अस्तित्व भी, सामाजिक-राजनीतिक ध्रुवीकरण भी होंगे, समीकरण भी। ये दो अलग, समानान्तर दुनियाएँ हैं- वर्चस्व और हाशिए की, शोषण और प्रतिरोध की, शिष्ट-संस्कृति और लोक संस्कृति की ।

शब्द दोनों तरफ़ है। पहला खेमा अपने वर्चस्व को व्यापकता और स्थायित्व देने के लिए शब्द का मनमाना इस्तेमाल कर रहा है। शब्द के सारे संचार माध्यमों पर उसका कब्ज़ा है इसलिए उसकी सारी सम्भावनाओं को अन्तिम प्रयास के रूप में नियोड़ा जा रहा है।

दूसरा खेमा शब्द के आत्मीय, अनोखे, अनगढ़, फूहड़ मगर अद्भुत अर्थ खोज रहा है-अपनी यातनाओं और संघर्षों में, स्वप्नों में। यहाँ शब्द का वर्तमान भी है और भविष्य भी। लेखक की मान्यता है कि भविष्य का शब्द उनका ही है। अगली सदी दलितों, वंचितों और स्त्रियों के साहित्य की है।

सदी का औपन्यासिक अन्त में दो भागों में तिलिस्म से लेकर कठघरे तक की यात्रा लेखक ने की है। सदी के इस आखिरी दशक के अनेक चर्चित, विवादास्पद उपन्यासों का एक बेजोड़ सिंहावलोकन यहाँ प्रस्तुत है । मटियानी बनाम मटियानी में उनके साहित्य और विचारधारा को एक-दूसरे के प्रतिपक्ष में रखकर साहित्य के उद्देश्य, प्रतिबद्धता, सामाजिक हस्तक्षेप के उन्हीं के पुराने मुद्दों पर पुनर्विचार किया गया है।

राजेन्द्र यादव (Rajendra Yadav)

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