हिन्दी के प्रख्यात कवि पद्मश्री (डॉक्टर) रवीन्द्र राजहंस जी का यह नवीनतम कविता-संग्रह न केवल हिन्दी काव्य-परम्परा बल्कि सम्पूर्ण भारतीय काव्य-धारा का अनूठा विस्तार तथा समृद्धि है। सम्भवतः पहली बार वृद्धों के जीवन को आलम्बन बनाकर एक स्वतः सम्पूर्ण कविता-पुस्तक प्रस्तुत की गयी है। इसका घोषित उद्देश्य तो है 'वृद्धों के प्रति संवेदना और सहानुभूति जगाना।' लेकिन ये कविताएँ स्वयं ही अपनी चौहद्दी का अतिक्रमण करती हैं। और इस प्रक्रिया में समकालीन जीवन तथा समाज की भीषण आलोचना करती हैं। यह संग्रह सम्पूर्ण भारतीय जीवन की निर्मम आलोचना एवं जीवन के सर्वोत्तम दाय की मार्मिक स्वीकृति का आख्यान है। यहाँ एक पूरा अलबम है, एक चित्रवीथी, जहाँ अनेकानेक धूलधूसरित, बहिष्कृत, उपेक्षित पर स्वाभिमानी पुरुष-स्त्रियों के श्वेत-श्याम चित्र हैं। अनेक हृदयस्पर्शी, विचलित कर देने वाले बिम्बों तथा वक्तव्यों से कवि ने यह वीथी रची है। निश्चय ही यह बेहद गहरे सन्ताप और अपार करुणा के दुर्लभतम संयोग का अन्तःपरिणाम है। रवीन्द्र राजहंस के इस संग्रह ने सिद्ध कर दिया है कि वे अतुलनीय कवि हैं जिसकी जड़ अपनी परम्परा एवं समकाल दोनों में है।
यह उन लोगों की कविता है जो 'अपना घर रहते हो चुके हैं बेघर' जिनका जीवन एक ढकढोल स्वेटर के समान है। जिन्हें भारतीय परम्परा और उज्ज्वलता का अभिमान है, वे इन कविताओं को पढ़ें और देखें कि कैसे श्रवण कुमार के माता-पिता कटे खेत के डरावने बिजूरने की तरह जीने को अभिशप्त हैं। कवि ने बेहद आत्मीयता, अन्तरंगताओं व पंख-स्पर्श से इन दुखियारों के जीवन का अंकन किया है। लेकिन वे यह कहना नहीं भूलते कि इस खारे मन में भी प्रेम का मीठा ज्वार है। इस सूने पिंजड़े में भी चहचहाचट और उड़ गये विहगों की ऊष्मा है। कवि के ही शब्दों में कहें तो यह वृद्धजन के भाव मनोदशा के उठते-गिरते स्पन्दनों का इलेक्ट्रोकार्डियोग्राम है। इन कविताओं को पढ़ते हुए आपको रुँघे हुए कंठ का धम्मक होगा और झनझना देने वालों रुदन का आभास ।
इसके पूर्व रवीन्द्र जी ने बच्चों के खोये हुए बचपन पर भी एक संग्रह प्रस्तुत किया था। यह वृद्धों के खोये हुए जीवन का संग्रह है। इसीलिए दोनों को मिलाकर पढ़ा जाना चाहिए। जो रवीन्द्र जी और उनके कुटुम्ब को जानते हैं, उन्हें लगेगा कि कितने सन्नद्ध पर निर्वैयक्तिक होकर कवि ने इन्हें रचा है। ये अनुभव कवि के निजी नहीं, वरन् सर्वजन के अनुभवों का निजीकरण अथक आभ्यन्तरकरण हैं। इसीलिए सर्वदेशी भी ।
एक वाक्य में कहें तो यह कविता संग्रह 'पीड़ाओं की पाण्डुलिपि' है और इसका लिपिकार एक महान कवि सम्भवतः अभी का सर्वाधिक करुणार्द्र, महान रचनाकार ।
पद्मश्री (डॉ.) रवीन्द्र राजहंस का जन्म बिहार के छोटे से गाँव 'भुल्ली' जो सीतामढ़ी में पड़ता है, में 2 मार्च 1939 को हुआ। इन्होंने अंग्रेजी विषय में एम. ए. और पीएच.डी. की और वे अंग्रेज़ी प्रभाग, कॉलेज ऑफ